August 26, 2017

कंचन : बेटी बहन भाभी से बहू तक का सफ़र - 04

गतान्क से आगे ......

उन्होने मुझे उठा के खड़ा किया और बाहों में भर के चूम लिया. उसके बाद मुझे नंगी ही अपनी बाहों में उठा कर बाथरूम में ले गये और एक स्टूल पे बैठा दिया. फिर मेरी टाँगें चौड़ी करके मेरी चूत पे पानी डाल के धोने लगे. मुझे बहुत शर्म आ रही थी और दर्द भी हो रहा था. उन्होने खूब अच्छी तरह से मेरी झांटें और चूत सॉफ की और फिर टवल से पोच्छा. मेरी झाँटें सुखाने के बाद बड़े ध्यान से मेरी फैली हुई टाँगों के बीच देखने लगे. मैं तो शरम से पानी पानी हो गयी,

“ अब हमे छोड़िए ना.. ऐसे क्या देख रहे हैं ?”

“ मेरी जान तुम तो कली से फूल बुन ही गयी हो लेकिन देखो ना जब हमने तुम्हें चोदना शुरू किया था तो उस वक़्त तुम्हारी चूत एक बूँद कच्ची काली लग रही थी. और अब देखो तुम्हारी वो कच्ची कली बिकुल फूल की तरह खिल गयी है. ऐसा लग रहा है जैसे एक बंद कली की पंखुड़ीयाँ खुल के फैल गयीं हों.”

मैने शर्म के मारे अपने मुँह दोनो हाथों से धक लिया. मैने वापस बेडरूम में जाने से पहले टवल लपेटने की कोशिश की तो उन्होने मेरे हाथ से टवल ले लिया और बोले,

“ तुम नंगी इतनी खूबसूरत लगती हो, टवल लपेटने की क्या ज़रूरत है.” मुझे टाँगें चौड़ी करके चलना पड़ रहा था. हम दोनो नंगे ही सो गये. सुबह उठ कर वो एक बार फिर से मुझे चोदना चाहते थे, लेकिन मैने उनसे कहा कि बहुत दर्द हो रहा है, मैं और सह नहीं पाउन्गि. इस तरह मैं सुबह की चुदाई से तो बच गयी. अगले दिन हम लोग हनिमून पे चले गये. सुहाग रात की ज़बरदस्त चुदाई के कारण मेरी चूत अभी तक सूजी हुई थी और दर्द भी कम नहीं हुआ था. मैं अभी और चुदाई के लिए तैयार नहीं थी, लेकिन क्या करती. हनिमून में तो चुदाई से बचाने का कोई रास्ता नहीं था. जिस दिन हम शिमला पहुँचे, उसी रात उन्होने मुझे चार बार जम के चोदा. कोई भी मेरी चाल देख के बता सकता था कि मेरी ज़बरदस्त चुदाई हो रही है. मैं बचाने की काफ़ी कोशिश करती, फिर भी ये मोका लगते ही दिन में एक या दो बार और रात में तीन से चार बार मुझे चोद्ते थे. 10 दिन के हनिमून में कम से कम 50 बार मेरी चुदाई हुई. होनेमून से वापस आने तक मेरी चूत इतनी फूल गयी थी कि मैं खुद उसे पहचान नहीं पा रही थी. मैं यह सोच के परेशान थी कि यदि चुदाई का सिलसिला ऐसे ही चलता रहा तो बहुत मुश्किल हो जाएगा. मेरी चूत को आराम की सख़्त ज़रूरत थी. लेकिन वैसा नहीं हुआ जैसा मैं सोचती थी.

हनिमून से वापस आने के बाद इनका ऑफीस शुरू हो गया. अब दिन में तो चुदाई नहीं हो पाती थी लेकिन रात में एक बार तो ज़रूर चोद्ते थे. अब मेरी चूत का दर्द ख़तम हो गया था और झिझक भी कम हो गई थी . चुदवाने में बहुत मज़ा आने लगा था और चूत बहुत गीली हो जाती. मैं भी अब चूतर उचका उचका के खूब मज़े ले कर चुदवाती थी. मेरी चूत इतना रस छ्चोड़ती की जब ये धक्के लगाते तो मेरी चूत में से फ़च.. फ़च….फ़च की आवाज़ें आती. मैं रोज़ रात होने का बेसब्री से इंतज़ार करती थी. कभी कभी च्छुतटी के दिन, दिन में भी चोद देते थे. मैं बहुत खुश थी. इनका लंड 8 इंच लंबा और अच्छा ख़ासा मोटा था. जब भी चोदते, एक घंटे से पहले नहीं झाड़ते थे. मेरा बहुत दिल करता था कि ये भी मेरे साथ वो सब कुच्छ करें जो पापा मम्मी के साथ करते थे. लेकिन ये मुझे सिर्फ़ एक ही मुद्रा में चोदते थे. कभी अपना लंड मेरे मुँह में नहीं डाला ओर ना ही मेरी चूत को कभी चॅटा. मेरी गांद की तरफ भी कभी ध्यान नहीं दिया.

पहले 6 महीने तो रोज़ रात को एक बार चुदाई हो ही जाती थी. धीरे धीरे हफ्ते में तीन बार चोदने लगे. शादी को एक साल गुज़रने वाला था. चुदाई और भी कम हो गयी थी. अब तो महीने में सिर्फ़ दो तीन बार ही चोदते थे. सब कुच्छ उल्टा हो रहा था. जैसे जैसे मुझे चुदवाने का शोक बढ़ने लगा , इन्होने चोदना और भी कम कर दिया. शादी के एक साल बाद ये आलम था कि महीने में दो तीन बार से ज़्यादा चुदाई नहीं होती थी. मैं रोज़ रात बड़ी बेसब्री से इंतज़ार करती कि आज चोदेन्गे लॅकिन रोज़ ही निराशा हाथ लगती. ऑफीस से बहुत लेट आते थे इसलिए थक जाते थे. जब कभी चोद्ते तो पूरी तरह नंगी भी नहीं करते, बस सारी उठा कर पेल देते. मेरी वासना की आग बढ़ती जा रही थी. मेरे पति के पास मेरी प्यास बुझाने का समय नहीं था.

हमारे साथ मेरे पति का छ्होटा भाई यानी मेरा देवर रामू भी रहता था. रामू एक लंबा तगड़ा सुडोल जवान था. वो कॉलेज में पढ़ता था और बॉडी बिल्डिंग भी किया करता था. मैं उसे मथ्स पढ़ाया करती थी. वो मेरी ओर आकर्षित था. हम दोनो में बहुत हँसी मज़ाक चलता रहता था. मैं उसे केयी बार अपने ब्लाउस के अंडर या टाँगों के बीच में झाँकते हुए पकड़ चुकी थी. मुझे मालूम था कि वो केयी बार मेरी पॅंटी के दर्शन कर चुका था. एक बार जब मैं नहाने जा रही थी तो उसने मुझे नंगी भी देख लिया था. मेरी एक पॅंटी भी उसने चुरा ली थी और उस पॅंटी के साथ वो क्या करता होगा ये भी मैं अच्छी तरह जानती थी. हँसी मज़्ज़ाक़ इस हद तक बढ़ गया था कि हम सब प्रकार की बातें बेझिझक करते थे. लेकिन मैं उसके साथ एक सीमा से बाहर नहीं जाना चाहती थी. अपने ही देवर के साथ किसी तरह का शारीरिक संबंध ठीक नहीं था. लेकिन मेरा ये विचार उस दिन बिल्कुल बदल गया जिस दिन मैं ग़लती से उसका लंड देख बैठी. ऊफ़ क्या मोटा और लंबा लंड था ! जब से मेरी नज़र उसके मूसल जैसे लंड पे पड़ी तब से मेरी रातों की नींद गायब हो गयी.

दोस्तो अब इससे आगे की कहानी मेरे देवर रामू की ज़ुबानी..........

मेरा नाम रामू है. मैं कॉलेज में पढ़ता हूँ. मेरी उम्र अब बीस साल है. मैं एक साल से अपने भैया और भाभी के साथ रह रहा हूँ. भैया एक बड़ी कंपनी में काम करते हैं. मेरी भाभी कंचन बहुत ही सुन्दर है. भैया की शादी को दो साल हो चुके हैं. भाभी की उम्र 24 साल है. मैं भाभी की बहुत इज़्ज़त करता हूँ और वो भी मुझे बहुत चाहती है. हम दोनो में खूब दोस्ती है और हँसी मज़ाक चलता रहता है. भाभी पढ़ाई में भी मेरी सहायता करती है. वो मुझे मथ्स पढ़ाती है.

एक दिन की बात है. भाभी मुझे पढ़ा रही थी और भैया अपने कमरे में लेटे हुए थे. रात के दस बजे थे. इतने में भैया की आवाज़ आई " कंचन, और कितनी देर है जल्दी आओ ना". भाभी आधे में से उठते हुए बोली " रामू बाकी कल करेंगे तुम्हारे भैया आज कुकछ ज़्यादा ही उतावले हो रहे हैं." यह कह कर वो जल्दी से अपने कमरे में चली गयी. मुझे भाभी की बात कुकछ ठीक से समझ नही आई. काफ़ी देर तक सोचता रहा, फिर अचानक ही दिमाग़ की ट्यूब लाइट जली और मेरी समझ में आ गया कि भैया को किस बात की उतावली हो रही थी. मेरे दिल की धड़कन तेज़ हो गयी. आज तक मेरे दिल में भाभी को ले कर बुरे विचार नही आए थे, लेकिन भाभी के मुँह से उतावले वाली बात सुन कर कुकछ अजीब सा लग रहा था. मुझे लगा कि भाभी के मुँह से अनायास ही यह निकल गया होगा. जैसे ही भाभी के कमरे की लाइट बंद हुई मेरे दिल की धड़कन और तेज़ हो गयी. मैने जल्दी से अपने कमरे की लाइट भी बंद कर दी और चुपके से भाभी के कमरे के दरवाज़े से कान लगा कर खड़ा हो गया. अंडर से फुसफुसाने की आवाज़ आ रही थी पर कुकछ कुकछ ही सॉफ सुनाई दे रहा था.

" क्यों जी आज इतने उतावले क्यों हो रहे हो?"

" मेरी जान कितने दिन से तुमने दी नही. इतना ज़ुल्म तो ना किया करो."

"चलिए भी,मैने कब रोका है, आप ही को फ़ुर्सत नही मिलती. रामू का कल एग्ज़ॅम है उसे पढ़ाना ज़रूरी था."

" अब श्रीमती जी की इज़ाज़त हो तो आपकी चूत का उद्घाटन करूँ."

" हाई राम! कैसी बातें बोलते हो.शरम नही आती"

" शर्म की क्या बात है. अब तो शादी को दो साल हो चुके हैं, फिर अपनी ही बीबी को चोदने में शरम कैसी"

" बड़े खराब हो. आह..एयेए..आह है राम….वी माआ……अयाया…… धीरे करो राजा अभी तो सारी रात बाकी है"

मैं दरवाज़े पर और ना खड़ा रह सका. पसीने से मेरे कपड़े भीग चुके थे. मेरा लंड अंडरवेर फाड़ कर बाहर आने को तैयार था. मैं जल्दी से अपने बिस्तेर पर लेट गया पर सारी रात भाभी के बारे में सोचता रहा. एक पल भी ना सो सका.ज़िंदगी में पहली बार भाभी के बारे में सोच कर मेरा लंड

खड़ा हुआ था. सुबह भैया ऑफीस चले गये. मैं भाभी से नज़रें नही मिला पा रहा था जबकि भाभी मेरी कल रात की करतूत से बेख़बर थी. भाभी किचन में काम कर रही थी. मैं भी किचन में खड़ा हो गया. ज़िंदगी में पहली बार मैने भाभी के जिस्म को गौर से देखा. गोरा भरा हुआ गदराया सा बदन,लंबे घने काले बॉल जो भाभी के घुटने तक लटकते थे, बरी बरी आँखें, गोल गोल आम के आकार की चुचियाँ जिनका साइज़ 38 से कम ना होगा, पतली कमर और उसके नीचे फैलते हुए चौड़े, भारी नितंब . एक बार फिर मेरे दिल की धड़कन बढ़ गयी . इस बार मैने हिम्मत कर के भाभी से पूछ ही लिया.

" भाभी, मेरा आज एग्ज़ॅम है और आप को तो कोई चिंता ही नही थी. बिना पढ़ाए ही आप कल रात सोने चल दी"

" कैसी बातें करता है रामू, तेरी चिंता नही करूँगी तो किसकी करूँगी?"

" झूट, मेरी चिंता थी तो गयी क्यों?"

" तेरे भैया ने जो शोर मचा रखा था."

" भाभी, भैया ने क्यों शोर मचा रखा था" मैने बारे ही भोले स्वर में पूछा. भाभी शायद मेरी चालाकी समझ गयी और तिरछी नज़र से देखते हुए बोली,

" धात बदमाश, सब समझता है और फिर भी पूछ रहा है. मेरे ख्याल से तेरी अब शादी कर देनी चाहिए. बोल है कोई लड़की पसंद?"

" भाभी सच कहूँ मुझे तो आप ही बहुत अच्छी लगती हो.

" चल नालयक भाग यहाँ से और जा कर अपना एग्ज़ॅम दे."

मैं एग्ज़ॅम तो क्या देता, सारा दिन भाभी के ही बारे में सोचता रहा. पहली बार भाभी से ऐसी बातें की थी और भाभी बिल्कुल नाराज़ नही हुई. इससे मेरी हिम्मत और बढ़ने लगी. मैं भाभी का दीवाना होता जा रहा था. भाभी रोज़ रात को देर तक पढ़ाती थी . मुझे महसूस हुआ शायद भैया भाभी को महीने में दो तीन बार ही चोद्ते थे. मैं अक्सर सोचता, अगर भाभी जैसी खूबसूरत औरत मुझे मिल जाए तो दिन में चार दफे चोदु.

दीवाली के लिए भाभी को मायके जाना था. भैया ने उन्हें मायके ले जाने का कम मुझे सोन्पा क्योंकि भैया को च्छुतटी नही मिल सकी. बहुत भीड़ थी. मैं भाभी के पीछे रेलवे स्टेशन पर रिज़र्वेशन की लाइन में खड़ा था. धक्का मुक्की के कारण आदमी आदमी से सटा जा रहा था. मेरा लंड बार बार भाभी के मोटे मोटे नितंबों से रगड़ रहा था.मेरे दिल की धड़कन तेज़ होने लगी. हालाकी मुझे कोई धक्का भी नही दे रहा था, फिर भी मैं भाभी के पीछे चिपक के खड़ा था. मेरा लंड फंफना कर अंडरवेर से बाहर निकल कर भाभी के चूतरों के बीच में घुसने की कोशिश कर रहा था. भाभी ने हल्के से अपने चूतरो को पीछे की तरफ धक्का दिया जिससे मेरा लंड और ज़ोर से उनके चूतरों से रगड़ने लगा. लगता है भाभी को मेरे लंड की गर्माहट महसूस हो गयी थी और उसका हाल पता था लेकिन उन्होनें दूर होने की कोशिश नही की. भीर के कारण सिर्फ़ भाभी को ही रिज़र्वेशन मिला. ट्रेन में हम दोनो एक ही सीट पर थे. रात को भाभी के कहने पर मैने अपनी टाँगें भाभी के तरफ और उन्होने अपनी टाँगें मेरी तरफ कर लीं और इस प्रकार हम दोनो आसानी से लेट गये. रात को मेरी आँख खुली तो ट्रेन के नाइट लॅंप की हल्की हल्की रोशनी में मैने देखा, भाभी गहरी नींद में सो रही थी और उसकी सारी जांघों तक सरक गयी थी . भाभी की गोरी गोरी नंगी टाँगें और मोटी मांसल जंघें देख कर मैं अपना कंट्रोल खोने लगा. सारी का पल्लू भी एक तरफ गिरा हुआ था और बड़ी बड़ी चुचियाँ ब्लाउस में से बाहर गिरने को हो रही थी. मैं मन ही मन मनाने लगा की सारी थोड़ी और उपर उठ जाए ताकि भाभी की चूत के दर्शन कर सकूँ. मैने हिम्मत करके बहुत ही धीरे से सारी को उपर सरकाना शुरू किया. सारी अब भाभी की चूत से सिर्फ़ 2 इंच ही नीचे थी पर कम रोशनी होने के कारण मुझे यह नही समझ आ रहा था की 2इंच उपर जो कालीमा नज़र आ रही थी वो काले रंग की कछि थी या भाभी की झटें. मैने सारी को थोड़ा और उपर उठाने की जैसे ही कोशिस की, भाभी ने करवट बदली और सारी को नीचे खींच लिया. मैने गहरी सांस ली और फिर से सोने की कोशिश करने लगा.

क्रमशः.........

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