August 26, 2017

कंचन : बेटी बहन भाभी से बहू तक का सफ़र - 29

इस घटना के बाद ना जाने रामलाल ने बहु की चूत की याद में कितनी बार मुठ मारी। सिर्फ़ एक बार बहु की चूत लेने के लिये तो वो जान भी देने को तैयार था। लेकिन क्या करता बेचारा। रिश्ता ही कुछ ऐसा था। रामलाल की दीवानगी बढ़ती जा रही थी। कन्चन रामलाल के दिल की हालत अच्छी तरह जानती थी। आखिर मर्दों को तड़पाने का खेल तो वो बचपन से खेल रही थी। एक रात की बात है। सासु मां अपने कमरे में सो रही थी और रामलाल भी अपने कमरे में लाईट बन्द करके सोने की कोशिश कर रहा था। इतने में उसे कुछ आवाज़ आई। कमरे से बाहर झांका तो देखा कि बहु बाथरूम की ओर जा रही थी। बहु ने नाईटी पहन रखी थी और नाईटी के बारीक कपड़े में से उसकी मांसल टांगों की झलक मिल रही थी। रामलाल समझ गया कि बहु पेशाब करने जा रही थी। बहु की चूत से निकलते पेशाब के मादक संगीत की कल्पना से ही रामलाल का लंड खड़ा होने लगा। कन्चन बाथरूम में गयी लेकिन सबको सोया समझ कर उसने बाथरूम का दरवाज़ा अन्दर से बन्द नहीं किया। थोड़ी देर में ’प्स्स्स्स्स्स्स...........’ का मधुर संगीत रामलाल के कानों में पड़ने लगा।

अचानक ज़ोर से बहु के चिल्लाने की आवाज़ आई। "आअआ आआअआ आआअआ इइइइई इइइइइइइइइई इइइइइइइइइइइइ" रामलाल घबड़ा के बाथरुम में भागा। उसने देखा बहु बुरी तरह घबड़ायी हुई थी। उसके चेहरे पे हवाईयां उड़ रही थी। बहुत ही अच्छा मौका था। रामलाल ने मौके का पूरा फायदा उठाते हुए बहु को खींच के सीने से लगा लिया। कन्चन तो बुरी तरह घबड़ायी हुई थी। वो भी रामलाल के बदन से चिपक गयी।

रामलाल कन्चन की पीठ सहलता हुआ बोला, "क्या हुआ बहु?"

"ज्ज्ज्जी... स्स्सांप। सांप" कन्चन नाली की ओर इशारा करते हुए बोली।

"वहां तो कुछ नहीं है।" रामलाल बहु की पीठ सहलता हुआ बोला। बहु ने ब्रा नहीं पहनी हुई थी।

"नहीं पिता जी नाली में से काले रंग का एक लम्बा मोटा सांप निकला था। शायद नाग था।"

"कैसे निकला बहु? तुम क्या कर रही थी?" रामलाल का हाथ बहु की पीठ से फिसल कर उसके मोटे मोटे चूतड़ों पे आ गया।

"हम वहां नाली पे बैठ के पेशाब कर रहे थे कि अचानक वो मोटा काला नाग निकल आया। हे राम कितना डरावना था। हमारी तो जान ही निकल गयी।"

बहु को दिलासा देने के बहाने रामलाल उसके विशाल चूतड़ों को सहलाने लगा। अचानक उसे एहसास हुआ कि बहु ने कच्छी भी नहीं पहनी हुई थी। नाईटी के अन्दर से बहु की नंगी जवानी रामलाल के बदन को गरमा रही थी।

"अरे बहु तुमने आज अन्दर से ब्रा और कच्छी नहीं पहनी है?" कन्चन को भी अचानक एहसास हुआ कि वो ससुर जी से चिपकी हुई है और ससुर जी काफ़ी देर से उसकी पीठ और चूतड़ों को सहला रहे हैं।

वो शर्माती हुई बोली, "जी सारा दिन बदन कसा रहता है ना, इसलिये रात को सोने से पहले हम ब्रा और कच्छी को उतार के सोते हैं।"

"तुम ठीक करती हो बहु। सारा दिन तो तुम्हारी जवानी ब्रा और कच्छी में कसी रहती है। रात में तो उसे आज़ादी चाहिये।" नाली के पास ही एक बाल्टी में बहु की ब्रा और कच्छी धोने के लिये पड़ी हुई थी। रामलाल उनकी ओर इशारा करते हुए बोला, "वही हैं ना तुम्हारे कपड़े?"

"जी।"

"हुम.... अब समझा ये नाग यहां क्यों आया था।" रामलाल बहु की कच्छी उठता हुआ बोला।

"क्यों आया था पिताजी ?" कन्चन रामलाल के हाथ में अपनी उतारी हुई पैंटी देख के बुरी तरह शर्मा गयी। रामलाल बहु के सामने ही उसकी पैंटी को सूंघता हुआ बोला।

"अरे बहु इस कच्छी में से तुम्हारे बदन की खुश्बू आ रही है। उस काले नाग को तुम्हारे बदन की ये खुश्बू पसन्द आ गयी होगी। जब तुम पेशाब करने के लिये पैर फैला के बैठी तो वही खुश्बू नाग को फिर से आई। इसिलिये वो एकदम से बाहर निकल आया।" रामलाल बहु के मादक चूतड़ों को सहलाता हुआ बोला।

"ठीक है पिताजी आगे से हम अपने कपड़े बाथरूम में नहीं रखेंगे।"

"हां बहु ये तो शुक्र करो नाग ने तुम्हें टांगों के बीच में नहीं काट लिया, नहीं तो बेचारे राकेश का क्या होता?" रामलाल बहु के चूतड़ दबाता हुआ बोला।

"हाय! पिताजी आप तो बहुत खराब हैं। हम ऐसे ही थोड़े ही काटने देते।"

"तो फिर कैसे काटने देती बहु?"रामलाल को कच्छी में चिपके हुए बहु की झांटों के दो बाल नज़र आ गये।

"ये बाल तुम्हारे हैं बहु?"

कन्चन का चेहरा सुर्ख लाल हो गया। वो हकलाती हुई बोली, "ज्ज्ज्जी"

"बहुत लम्बे हैं। हम तो तुम्हारे सिर के बाल देख कर ही समझ गये थे कि बाकी जगह के बाल भी खूब लम्बे होंगे।" अब तो कन्चन का रामलाल से आंख मिला पाना मुश्किल हो रहा था। ससुर जी की बाहों से अपने आप को छुड़ा के बोली, "म्म्म्म। पिताजी हमें बहुत नींद आ रही है अब हम सोने जा रहे हैं।" कन्चन जल्दी से अपने कमरे में भाग गयी। वो सोच रही थी कि आज दूसरी बार ससुर जी ने मौके का पूरा फायदा उठाया और वो कुछ ना कर सकी।

उधर रामलाल अपने बिस्तर पे करवट बदल रहा था। वो बहु के सोने का इन्तज़ार कर रहा था ताकि बाथरूम में जा के उसकी कच्छी को सूंघ के उसकी मादक चूत की महक ले सके। जैसे ही कन्चन के कमरे की लाईट बन्द हुई रामलाल बाथरूम की ओर चल पड़ा। बाथरूम में घुस कर बहु की कच्छी को सूंघते सूंघते उसका लंड बुरी तरह खड़ा हो गया। रामलाल बहु की नाज़ुक कच्छी को अपने लंड के सुपाड़े पे रख के रगड़ने लगा। काफ़ी देर तक रगड़ने के बाद वो झड़ गया और उसके लंड ने ढेर सारा वीर्य बहु की कच्छी में उड़ेल दिया। रामलाल कच्छी को वहीं धोने के कपड़ों में डाल कर वापिस अपने कमरे में आ कर सो गया। अगले दिन जब कन्चन ने धोने के लिये अपनी पैंटी उठाई तो वीर्य के दाग लगे हुए देख कर समझ गयी कि ससुर जी ने रात को अपना लंड उसकी पैंटी पे रगड़ा है। अब तो कन्चन के मन में ससुर जी के इरादों के बारे में कोई शक नहीं रह गया था। लेकिन वो जानती थी की शायद ससुर जी पहल नहीं करेंगे। उन्हें बढ़ावा देना पड़ेगा। अब तो वो भी ससुर जी के लंड के दर्शन करने के लिये तड़प रही थी।

जब से रामलाल को पता लगा था की बहु रात को सोते वक्त ब्रा और पैंटी उतार के सोती है तब से वो इस चक्कर में रहता था की किसी तरह बहु के नंगे बदन के दर्शन हो जाएं। इसी चक्कर में रामलाल एक दिन सवेरे जल्दी उठ कर बहु को चाय देने के बहाने उसके कमरे में घुस गया। कन्चन बेखबर घोड़े बेच कर सो रही थी। वो पेट के बल पड़ी हुई थी और उसकी नाईटी जांघों तक उठी हुई थी। बहु की गोरी गोरी मोटी मांसल जांघें देख के रामलाल का लंड फनफनाने लगा। उसका दिल कर रहा था कि नाईटी को ऊपर खिस्का के बहु के विशाल मादक चूतड़ों के दर्शन कर ले, लेकिन इतनी हिम्मत नहीं जुटा पया।

रामलाल ने चाय टेबल पे रखी और फिर बहु के विशाल चूतड़ों को हिलाते हुए बोला, "बहु उठो, चाय पी लो।"

कन्चन हड़बड़ा के उठी। गहरी नींद से इस तरह हड़बड़ा के उठ कर बैठते हुए कन्चन की नाईटी बिल्कुल ही ऊपर तक सरक गयी और इससे पहले कि वो अपनी नाईटी ठीक करे, एक सेकेंड के लिये रामलाल को कन्चन की गोरी गोरी मांसल जांघों के बीच में से घने बालों से ढकी हुई चूत की एक झलक मिल गयी।

"अरे पिताजी आप?"

"हां बहु हमने सोचा रोज़ बहु हमें चाय पिलाती है तो आज क्यों ना हम बहु को चाय पिलाएं।"

"पिताजी आपने क्यों तकलीफ़ की। हम उठ के चाय बना लेते।" मन ही मन कन्चन जानती थी ससुर जी ने इतनी तकलीफ़ क्यों की। पता नहीं ससुर जी कितनी देर से उसकी जवानी का अपनी आंखों से रसपान कर रहे थे।

"अरे इसमें तकलीफ़ की क्या बात है। तुम चाय पी लो।" ये कह कर रामलाल चला गया।

कन्चन ने नोटिस किया की ससुर जी का लंड खड़ा हुआ था जिसको छुपाते हुए वो बाहर चले गये। कन्चन के दिमाग में एक प्लान आया। वो देखना चाहती थी की अगर ससुर जी को इस तरह का मौका मिल जाए तो वो किस हद तक जा सकते हैं। उस रात कन्चन ने सिर दर्द का बहाना किया और ससुर जी से सिर दर्द की दवा मांगी।

"पिता जी हमारे सिर में बहुत दर्द हो रहा है। सिर दर्द और नींद की गोली भी दे दीजिये।"

"हां बहु सिर दर्द के साथ तुम दो नींद की दो गोली ले लो ताकि रात में परेशानी ना हो।" कन्चन समझ गयी की ससुरजी नींद की दो गोली खाने के लिये क्यों कह रहे हैं। उसका प्लान सफ़ल होता नज़र आ रहा था। उसे पूरा विश्वास था की आज रात ससुर जी उसके कमरे में ज़रूर आएंगे। रात को सोने से पहले ससुर जी ने अपने हाथों से कन्चन को सिर दर्द और नींद की दो गोलिआं दी।

कन्चन गोलिआं ले कर अपने कमरे में आयी और गोलिओं को तो बाथरूम में फैंक दिया। ससुर जी को यह दिखाने के लिये कि वो सिर दर्द से बहुत परेशान और थकी हुई हई, कन्चन ने साड़ी उतार के पास पड़ी कुर्सी पे फैंक दी। फिर उसने अपनी पैंटी और ब्रा उतारी और बिस्तर के पास ज़मीन पर फैंक दी। ब्लाउज के सामने वाले तीन हुक्स में से दो हुक खोल दिये। अब तो उसकी बड़ी बड़ी चूचिआं ब्लाउज में सिर्फ़ एक ही हुक के कारण कैद थी। कन्चन का आज नाईटी के बजाये ब्लाउज और पेटिकोट में ही सोने का इरादा था ताकी ससुर जी को ऐसा लगे कि सिर दर्द और नींद के कारण उसने नाईटी भी नहीं पहनी। आज तो उसने अपने कमरे के बाहर की लाईट भी बन्द नहीं की ताकी थोड़ी रौशनी अन्दर आती रहे और ससुर जी उसकी जवानी को देख सकें। पूरी तयारी करके कन्चन ने अपने बाल भी खोल लिये और बिस्तर पर बहुत मादक ढंग से लेट गयी। वो पेट के बल लेटी हुई थी और उसने पेटिकोट इतना ऊपर चढ़ा लिया कि अब वो उसके चूतड़ों से दो इंच ही नीचे था। कन्चन की गोरी गोरी मांसल जांघें और टांगें पूरी तरह से नंगी थी।

ससुर जी के स्वागत की पूरी तैयारी हो चुकी थी। रात भी काफ़ी हो चुकी थी और कन्चन बड़ी बेसब्री से ससुर जी के आने का इन्त्ज़ार कर रही थी। वो सोच रही थी की ससुर जी उसको गहरी नींद में समझ कर क्या क्या करेंगे। रात को करीब एक बजे के आस पास कन्चन को अपने कमरे का दरवाज़ा खुलने की आवाज़ आई। उसकी सांसें तेज़ हो गयी। थोड़ा थोड़ा डर भी लग रहा था।

ससुर जी दबे पाओं कमरे में घुसे और सामने का नज़ारा देख के उनका दिल ज़ोर ज़ोर से धड़कने लगा। बहु इतनी थकी हुई और नींद में थी कि उसने नाईटी तक नहीं पहनी। पेट के बल पड़ी हुई बहु के चूतड़ों का उभार बहुत ही जान लेवा था। बाहर से आती हुई भीनी भीनी रोशनी में जांघों तक उठा हुआ पेटिकोट बहु की नंगी टांगों को बहुत ही मादक बना रहा था। बहु ऐसे टांगें फैला के पड़ी हुई थी कि थोड़ा सा पेटिकोट और ऊपर सरक जाता तो बहु की लाजवाब चूत के दर्शन हो जाते जिसकी झलक रामलाल पहले भी देख चुका था। आज मौका था जी भर के बहु की चूत के दर्शन करने का। रामलाल मन ही मन मना रहा था कि कहीं बहु कच्छी पहन के ना सो गयी हो। तभी उसकी नज़र बिस्तर के पास ज़मीन पे पड़ी हुई कच्छी और ब्रा पे पड़ गयी। रामलाल का लंड बुरी तरह से खड़ा हो गया था। रामलाल सोच रहा था कि बेचारी बहु इतनी नींद में थी कि कच्छी और ब्रा भी ज़मीन पे ही फेंक दिये। अब तो उसे यकीन था कि बहु पेटिकोट और ब्लाउज के नीचे बिकुल नंगी थी। सारा दिन ब्रा और कच्छी में कसी हुई जवानी को बहु ने रात को आज़ाद कर दिया था। और आज रात रामलाल बहु की आज़ाद जवानी के दर्शन करने का इरादा कर के आया था। फिर भी वो यकीन करना चाहता था की बहु गहरी नींद में सो रही है।

फिर भी वो यकीन करना चाहता था की बहु गहरी नींद में सो रही है।

उसने कन्चन को धीरे से पुकारा, "बहु! बहु! सो गयी क्या?"

कोई जबाब नहीं। अब रामलाल ने धीरे से कन्चन को हिलाया। अब भी बहु ने कोई हरकत नहीं की। रामलाल को यकीन हो गया कि नींद की गोली ने अपना काम कर दिया है। कन्चन आंखें बन्द किये पड़ी हुई थी। अब रामलाल की हिम्मत बढ़ गयी। वो बहु की कच्छी को उठा के सूघने लगा। बहु की कच्छी की गन्ध ने उसे मदहोश कर दिया। सारा दिन पहनी हुई कच्छी में चूत, पेशाब और शायद बहु की चूत के रस की मिली जुली खुश्बू थी। लौड़ा बुरी तरह से फनफनया हुआ था। रामलाल ने बहु की कच्छी को जी भर के चूमा और उसकी मादक गन्ध का आनंद लिया। अब रामलाल पेट के बल पड़ी हुई बहु के पैरों की तरफ़ आ गया। बहु की अल्हड़ जवानी अब उसके सामने थी। रामलाल ने धीरे धीरे बहु के पेटिकोट को ऊपर की ओर सरकना शुरु कर दिया। थोड़ी ही देर में पेटिकोट बहु की कमर तक ऊपर उठ चुका था। सामने का नज़ारा देख के रामलाल की आंखें फटी रह गयी। बहु कमर से नीचे बिल्कुल नंगी थी। आज तक उसने इतना खूबसूरत नज़ारा नहीं देखा था।

बहु के गोरे गोरे मोटे मोटे फैले हुए चूतड़ बाहर से आती हुई हल्की रोशनी में बहुत ही जान लेवा लग रहे थे। रामलाल अपनी ज़िन्दगी में कई औरतों को चोद चुका था लेकिन आज तक इतने सैक्सी नितम्ब किसी भी औरत के नहीं थे। रामलाल मन ही मन सोचने लगा की अगर ऐसी औरत उसे मिल जाए तो वो ज़िन्दगी भर उसकी गांड ही मारता रहे। लेकिन ऐसी किस्मत उसकी कहां? आज तक उसने किसी औरत की गांड नहीं मारी थी। मारने की तो बहुत कोशिश की थी लेकिन उसके गधे जैसे लंड को देख कर किसी औरत की हिम्मत ही नहीं हुई। पता नहीं बेटा बहु की गांड मारता है कि नहीं। उधर कन्चन का भी बुरा हाल था। उसने खेल तो शुरु कर दिया लेकिन अब उसे बहुत शरम आ रही थी और थोड़ा डर भी लग रहा था॥ हालांकि एक बार पहले वो ससुर जी को अपने नंगे बदन के दर्शन करा चुकी थी लेकिन उस वक्त ससुर जी बहुत दूर थे। आज तो ससुर जी अपने हाथों से उसे नंगी कर रहे थे। फैली हुई टांगों के बीच से चूत के घने बालों की झलक मिल रही थी। रामलाल ने बहुत ही हल्के से बहु के नंगे चूतड़ों पे हाथ फेरना शुरु कर दिया। कन्चन के दिल की धड़कन तेज़ होने लगी। रामलाल ने हल्के से एक उंगली कन्चन के चूतड़ों की दरार में फेर दी। लेकिन कन्चन जिस मुद्रा में लेटी हुई थी उस मुद्रा में उसकी गांड का छेद दोनों चूतड़ों के बीच बन्द था। आखिर कन्चन एक औरत थी।

एक मर्द का हाथ उसके नंगे चूतड़ों को सहला रहा था। अब उसकी चूत भी गीली होने लगी। अभी तक कन्चन अपनी दोनों टांगें सीधी लेकिन थोड़ी चौड़ी करके पेट के बल लेटी हुई थी॥ ससुर जी को अपनी चूत की झलक और अच्छी तरह देने के लिये अब उसने एक टांग मोड़ के ऊपर कर ली। ऐसा करने से अब कन्चन की चूत उसकी टांगों के बीच में से साफ़ नज़र आने लगी। बिल्कुल साफ़ तो नहीं कहेंगे, लेकिन जितनी साफ़ उस भीनी भीनी रोशनी में नज़र आ सकती थी उतनी साफ़ नज़र आ रही थी। गोरी गोरी मांसल जांघों के बीच घनी और लम्बी लम्बी झांटों से ढकी बहु की खूब फूली हुई चूत देख के रामलाल की लार टपकने लगी। हालांकि गांड का छेद अब भी नज़र नहीं आ रहा था। रामलाल ने नीचे झुक के अपना मुंह बहु की जांघों के बीच डाल दिया। बहु की झांटों के बाल उसकी नाक और होंठों को छू रहे थे। अब कुत्ते की तरह वो बहु की चूत सूघंने लगा। कन्चन की चूत काफ़ी गीली हो चुकी थी और अब उसमें से बहुत मादक खुश्बू आ रही थी। आज तक तो रामलाल बहु की पैंटी सूंघ कर ही काम चला रहा था लेकिन आज उसे पता चला की बहु की चूत की गन्ध में क्या जादू है। रामलाल को ये भी अच्छी तरह समझ आ गया कोई कुत्ता कुतिआ को चोदने से पहले उसकी चूत क्यों सूंघता है।

रामलाल ने हिम्मत करके हल्के से बहु की चूत को चूम लिया। कन्चन इस के लिये तैयार नहीं थी। जैसे ही रामलाल के होंठ उसकी चूत पे लगे वो हड़बड़ा गयी। रामलाल झट से चारपायी के नीचे छुप गया। कन्चन अब सीधी हो कर पीठ के बल लेट गयी लेकिन अपना पेटिकोट जो कि कमर तक उठ चुका था नीचे करने की कोई कोशिश नहीं की। रामलाल को लगा की बहु फिर सो गयी है तो वो फिर चारपायी के नीचे से बाहर निकला। बाहर निकल के जो नज़ारा उसके सामने था उसे देख के वो दंग रह गया। बहु अब पीठ के बल पड़ी हुई थी। पेटिकोट पेट तक ऊपर था ओर उसकी चूत बिल्कुल नंगी थी। रामलाल बहु की चूत देखता ही रहा गया। घने काले लम्बे लम्बे बालों से बहु की चूत पूरी तरह ढकी हुई थी। बाल उसकी नाभी से करीब तीन इन्च नीचे से ही शुरु हो जाते थे। रामलाल ने आज तक किसी औरत की चूत पे इतने लम्बे और घने बाल नहीं देखे थे। पूरा जंगल उगा रखा था बहु ने। ऐसा लग रहा था मानो ये घने बाल बुरी नज़रों से बहु की चूत की रक्षा कर रहे हों। अब रामलाल की हिम्मत नहीं हुई की वो बहु की चूत को सहला सके क्युंकि बहु पीठ के बल पड़ी हुई थी और अब अगर उसकी आंख खुली तो वो रामलाल को देख लेगी। बहु के होंठ थोड़े थोड़े खुले हुए थे। रामलाल बहु के उन गुलाबी होंठों को चूसना चाहता था लेकिन ऐसा कर पाना मुश्किल था। फिर अचानक रामलाल के दिमाग में एक प्लान आया। उसने बहु का पेटिकोट धीरे से नीचे करके उसकी नंगी चूत को ढक दिया। अब उसने अपना फनफनाता हुआ लौड़ा अपनी धोती से बाहर निकाला और धीरे से बहु के खुले हुए गुलाबी होंठों के बीच टिका दिया।

कन्चन को एक सेकेन्ड के लिये समझ नहीं आया की उसकी होंठों के बीच ये गरम गरम ससुर जी ने क्या रख दिया लेकिन अगले ही पल वो समझ गयी की उसके होंठों के बीच ससुर जी का तना हुआ लौड़ा है। मर्द के लंड का टेस्ट वो अच्छी तरह पहचानती थी। अपने देवर का लंड वो ना जाने कितनी बार चूस चुकी थी। वो एक बार फिर हड़बड़ा गयी लेकिन इस बार बहुत कोशिश करके वो बिना हिले आंखें बन्द किये पड़ी रही। ससुर जी के लंड के सुपाड़े से निकले हुए रस ने कन्चन के होंठों को गीला कर दिया। कन्चन के होंठ थोड़े और खुल गये। रामलाल ने देखा की बहु अब भी गहरी नींद में है तो उसकी हिम्मत और बढ़ गयी। बहु के होंठों की गर्मी से उसका लंड बहु के मुंह में घुसने को उतावला हो रहा था। रामलाल ने बहुत धीरे से बहु के होंठों पे अपने लंड का दबाव बढ़ाना शुरु किया। लेकिन लंड तो बहुत मोटा था। मुंह में लेने के लिये कन्चन को पूरा मुंह खोलना पड़ता। रामलाल ने अब अपना लंड बहु के होंठों पे रगड़ना शुरु कर दिया और साथ में उसके मुंह में भी घुसेड़ने की कोशिश करने लगा। रामलाल के लंड का सुपाड़ा बहु के थूक से गीला हो चुका था। कन्चन की चूत बुरी तरह गीली हो गयी थी। उसका अपने ऊपर कन्ट्रोल टूट रहा था। उसका दिल कर रहा था की मुंह खोल के ससुर जी के लंड का सुपाड़ा मुंह में लेले। अब नाटक खत्म करने का वक्त आ गया था।

कन्चन ने ऐसा नाटक किया जैसे उसकी नींद खुल रही हो। रामलाल तो इस के लिये तैयार था ही। उसने झट से लंड धोती में कर लिया। बहु का पेटिकोट तो पहले ही ठीक कर दिया था। कन्चन ने धीरे धीरे आंखें खोली और ससुर जी को देख कर हड़बड़ा के उठ के बैठने का नाटक किया। वो घबराते हुए अपने अस्त व्यस्त कपड़े ठीक करते हुए बोली, "पिताजी...अआप? यहां क्या कर रहे हैं?"

"घबराओ नहीं बेटी, हम तो देखने आए थे कि कहीं तुम्हारी तबियत और ज़्यादा तो खराब नहीं हो गयी। कैसा लग रहा है?" रामलाल बहु के माथे पे हाथ रखता हुआ बोला जैसे सचमुच बहु का बुखार चैक कर रहा हो।

कन्चन के ब्लाउज के तीन हुक खुले हुए थे। वो अपनी चूचिओं को ढकते हुए बोली,"जी। मैं अब बिल्कुल ठीक हूं। नींद की गोलिआं खा के अच्छी नींद आ गयी थी। लेकिन आप इतनी रात को...?"

"हां बेटी, बहु की तबियत खराब हो तो हमें नींद कैसे आती। सोचा देख लें तुम ठीक से सो तो रही हो।"

"सच पिता जी आप कितने अच्छे हैं। हम तो बहुत भाग्यशाली हैं जिसे इतने अच्छे सास और ससुर मिले।"

"ऐसा ना कहो बहु। तुम रोज़ हमारी इतनी सेवा करती हो तो क्या हम एक दिन भी तुम्हारी सेवा नहीं कर सकते? हमारी अपनी बेटी होती तो क्या हम ये सब नहीं करते" रामलाल प्यार से बहु की पीठ सहलाते हुए बोला। कन्चन मन ही मन हंसते हुए सोचने लगी, अपनी बेटी को भी आधी रात को नंगी करके उसके मुंह में लंड पेल देते?

"पिताजी हम बिल्कुल ठीक हैं। आप सो जाइये।"

"अच्छा बहु हम चलते हैं। आज तो तुमने कपड़े भी नहीं बदले। बहुत थक गयी होगी।"

"जी सिर में बहुत दर्द हो रहा था।"

"हम समझते हैं बहु। अरे ये क्या? तुम्हारी कच्छी और ब्रा नीचे ज़मीन पे पड़ी हुई है।" रामलाल ऐसे बोला जैसे उसकी नज़र बहु की कच्छी और ब्रा पर अभी पड़ी हो। रामलाल ने बहु की कच्छी और ब्रा उठा ली।

"जी हमें दे दीजिये।" कन्चन शर्माते हुए बोली।

"तुम आराम करो हम धोने डाल देंगे। लेकिन ऐसे अपनी कच्छी मत फ़ेंका करो। वो काला नाग सूंघता हुआ आ जाएगा तो क्या होगा? उस दिन तो तुम बच गयी नहीं तो टांगों के बीच में ज़रूर काट लेता।"

कन्चन ने मन ही मन कहा वो काला नाग काटे या ना काटे लेकिन ससुर जी की टांगों के बीच का काला नाग ज़रूर किसी दिन काट लेगा। रामलाल बहु की कच्छी और ब्रा ले के चला गया। कन्चन अच्छी तरह जानती थी कि उसकी कच्छी का क्या हाल होने वाला है। रामलाल बहु की कच्छी अपने कमरे में ले गया और उसकी मादक खुश्बू सूंघ के अपने लंड के सुपाड़े पे रख के रगड़ने लगा। हमेशा की तरह ढेर सारा वीर्य बहु की कच्छी में उड़ेल दिया और लंड कच्छी से पोंछ के उसे धोने में डाल दिया। कच्छी की दास्तान कन्चन को अगले दिन कपड़े धोते समय पता लग गयी।

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