August 26, 2017

कंचन : बेटी बहन भाभी से बहू तक का सफ़र - 30

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कंचन : बेटी बहन भाभी से बहू तक का सफ़र - 29

इस घटना के बाद ना जाने रामलाल ने बहु की चूत की याद में कितनी बार मुठ मारी। सिर्फ़ एक बार बहु की चूत लेने के लिये तो वो जान भी देने को तैयार था। लेकिन क्या करता बेचारा। रिश्ता ही कुछ ऐसा था। रामलाल की दीवानगी बढ़ती जा रही थी। कन्चन रामलाल के दिल की हालत अच्छी तरह जानती थी। आखिर मर्दों को तड़पाने का खेल तो वो बचपन से खेल रही थी। एक रात की बात है। सासु मां अपने कमरे में सो रही थी और रामलाल भी अपने कमरे में लाईट बन्द करके सोने की कोशिश कर रहा था। इतने में उसे कुछ आवाज़ आई। कमरे से बाहर झांका तो देखा कि बहु बाथरूम की ओर जा रही थी। बहु ने नाईटी पहन रखी थी और नाईटी के बारीक कपड़े में से उसकी मांसल टांगों की झलक मिल रही थी। रामलाल समझ गया कि बहु पेशाब करने जा रही थी। बहु की चूत से निकलते पेशाब के मादक संगीत की कल्पना से ही रामलाल का लंड खड़ा होने लगा। कन्चन बाथरूम में गयी लेकिन सबको सोया समझ कर उसने बाथरूम का दरवाज़ा अन्दर से बन्द नहीं किया। थोड़ी देर में ’प्स्स्स्स्स्स्स...........’ का मधुर संगीत रामलाल के कानों में पड़ने लगा।

अचानक ज़ोर से बहु के चिल्लाने की आवाज़ आई। "आअआ आआअआ आआअआ इइइइई इइइइइइइइइई इइइइइइइइइइइइ" रामलाल घबड़ा के बाथरुम में भागा। उसने देखा बहु बुरी तरह घबड़ायी हुई थी। उसके चेहरे पे हवाईयां उड़ रही थी। बहुत ही अच्छा मौका था। रामलाल ने मौके का पूरा फायदा उठाते हुए बहु को खींच के सीने से लगा लिया। कन्चन तो बुरी तरह घबड़ायी हुई थी। वो भी रामलाल के बदन से चिपक गयी।

रामलाल कन्चन की पीठ सहलता हुआ बोला, "क्या हुआ बहु?"

"ज्ज्ज्जी... स्स्सांप। सांप" कन्चन नाली की ओर इशारा करते हुए बोली।

"वहां तो कुछ नहीं है।" रामलाल बहु की पीठ सहलता हुआ बोला। बहु ने ब्रा नहीं पहनी हुई थी।

"नहीं पिता जी नाली में से काले रंग का एक लम्बा मोटा सांप निकला था। शायद नाग था।"

"कैसे निकला बहु? तुम क्या कर रही थी?" रामलाल का हाथ बहु की पीठ से फिसल कर उसके मोटे मोटे चूतड़ों पे आ गया।

"हम वहां नाली पे बैठ के पेशाब कर रहे थे कि अचानक वो मोटा काला नाग निकल आया। हे राम कितना डरावना था। हमारी तो जान ही निकल गयी।"

बहु को दिलासा देने के बहाने रामलाल उसके विशाल चूतड़ों को सहलाने लगा। अचानक उसे एहसास हुआ कि बहु ने कच्छी भी नहीं पहनी हुई थी। नाईटी के अन्दर से बहु की नंगी जवानी रामलाल के बदन को गरमा रही थी।

"अरे बहु तुमने आज अन्दर से ब्रा और कच्छी नहीं पहनी है?" कन्चन को भी अचानक एहसास हुआ कि वो ससुर जी से चिपकी हुई है और ससुर जी काफ़ी देर से उसकी पीठ और चूतड़ों को सहला रहे हैं।

वो शर्माती हुई बोली, "जी सारा दिन बदन कसा रहता है ना, इसलिये रात को सोने से पहले हम ब्रा और कच्छी को उतार के सोते हैं।"

"तुम ठीक करती हो बहु। सारा दिन तो तुम्हारी जवानी ब्रा और कच्छी में कसी रहती है। रात में तो उसे आज़ादी चाहिये।" नाली के पास ही एक बाल्टी में बहु की ब्रा और कच्छी धोने के लिये पड़ी हुई थी। रामलाल उनकी ओर इशारा करते हुए बोला, "वही हैं ना तुम्हारे कपड़े?"

"जी।"

"हुम.... अब समझा ये नाग यहां क्यों आया था।" रामलाल बहु की कच्छी उठता हुआ बोला।

"क्यों आया था पिताजी ?" कन्चन रामलाल के हाथ में अपनी उतारी हुई पैंटी देख के बुरी तरह शर्मा गयी। रामलाल बहु के सामने ही उसकी पैंटी को सूंघता हुआ बोला।

"अरे बहु इस कच्छी में से तुम्हारे बदन की खुश्बू आ रही है। उस काले नाग को तुम्हारे बदन की ये खुश्बू पसन्द आ गयी होगी। जब तुम पेशाब करने के लिये पैर फैला के बैठी तो वही खुश्बू नाग को फिर से आई। इसिलिये वो एकदम से बाहर निकल आया।" रामलाल बहु के मादक चूतड़ों को सहलाता हुआ बोला।

"ठीक है पिताजी आगे से हम अपने कपड़े बाथरूम में नहीं रखेंगे।"

"हां बहु ये तो शुक्र करो नाग ने तुम्हें टांगों के बीच में नहीं काट लिया, नहीं तो बेचारे राकेश का क्या होता?" रामलाल बहु के चूतड़ दबाता हुआ बोला।

"हाय! पिताजी आप तो बहुत खराब हैं। हम ऐसे ही थोड़े ही काटने देते।"

"तो फिर कैसे काटने देती बहु?"रामलाल को कच्छी में चिपके हुए बहु की झांटों के दो बाल नज़र आ गये।

"ये बाल तुम्हारे हैं बहु?"

कन्चन का चेहरा सुर्ख लाल हो गया। वो हकलाती हुई बोली, "ज्ज्ज्जी"

"बहुत लम्बे हैं। हम तो तुम्हारे सिर के बाल देख कर ही समझ गये थे कि बाकी जगह के बाल भी खूब लम्बे होंगे।" अब तो कन्चन का रामलाल से आंख मिला पाना मुश्किल हो रहा था। ससुर जी की बाहों से अपने आप को छुड़ा के बोली, "म्म्म्म। पिताजी हमें बहुत नींद आ रही है अब हम सोने जा रहे हैं।" कन्चन जल्दी से अपने कमरे में भाग गयी। वो सोच रही थी कि आज दूसरी बार ससुर जी ने मौके का पूरा फायदा उठाया और वो कुछ ना कर सकी।

उधर रामलाल अपने बिस्तर पे करवट बदल रहा था। वो बहु के सोने का इन्तज़ार कर रहा था ताकि बाथरूम में जा के उसकी कच्छी को सूंघ के उसकी मादक चूत की महक ले सके। जैसे ही कन्चन के कमरे की लाईट बन्द हुई रामलाल बाथरूम की ओर चल पड़ा। बाथरूम में घुस कर बहु की कच्छी को सूंघते सूंघते उसका लंड बुरी तरह खड़ा हो गया। रामलाल बहु की नाज़ुक कच्छी को अपने लंड के सुपाड़े पे रख के रगड़ने लगा। काफ़ी देर तक रगड़ने के बाद वो झड़ गया और उसके लंड ने ढेर सारा वीर्य बहु की कच्छी में उड़ेल दिया। रामलाल कच्छी को वहीं धोने के कपड़ों में डाल कर वापिस अपने कमरे में आ कर सो गया। अगले दिन जब कन्चन ने धोने के लिये अपनी पैंटी उठाई तो वीर्य के दाग लगे हुए देख कर समझ गयी कि ससुर जी ने रात को अपना लंड उसकी पैंटी पे रगड़ा है। अब तो कन्चन के मन में ससुर जी के इरादों के बारे में कोई शक नहीं रह गया था। लेकिन वो जानती थी की शायद ससुर जी पहल नहीं करेंगे। उन्हें बढ़ावा देना पड़ेगा। अब तो वो भी ससुर जी के लंड के दर्शन करने के लिये तड़प रही थी।

जब से रामलाल को पता लगा था की बहु रात को सोते वक्त ब्रा और पैंटी उतार के सोती है तब से वो इस चक्कर में रहता था की किसी तरह बहु के नंगे बदन के दर्शन हो जाएं। इसी चक्कर में रामलाल एक दिन सवेरे जल्दी उठ कर बहु को चाय देने के बहाने उसके कमरे में घुस गया। कन्चन बेखबर घोड़े बेच कर सो रही थी। वो पेट के बल पड़ी हुई थी और उसकी नाईटी जांघों तक उठी हुई थी। बहु की गोरी गोरी मोटी मांसल जांघें देख के रामलाल का लंड फनफनाने लगा। उसका दिल कर रहा था कि नाईटी को ऊपर खिस्का के बहु के विशाल मादक चूतड़ों के दर्शन कर ले, लेकिन इतनी हिम्मत नहीं जुटा पया।

रामलाल ने चाय टेबल पे रखी और फिर बहु के विशाल चूतड़ों को हिलाते हुए बोला, "बहु उठो, चाय पी लो।"

कन्चन हड़बड़ा के उठी। गहरी नींद से इस तरह हड़बड़ा के उठ कर बैठते हुए कन्चन की नाईटी बिल्कुल ही ऊपर तक सरक गयी और इससे पहले कि वो अपनी नाईटी ठीक करे, एक सेकेंड के लिये रामलाल को कन्चन की गोरी गोरी मांसल जांघों के बीच में से घने बालों से ढकी हुई चूत की एक झलक मिल गयी।

"अरे पिताजी आप?"

"हां बहु हमने सोचा रोज़ बहु हमें चाय पिलाती है तो आज क्यों ना हम बहु को चाय पिलाएं।"

"पिताजी आपने क्यों तकलीफ़ की। हम उठ के चाय बना लेते।" मन ही मन कन्चन जानती थी ससुर जी ने इतनी तकलीफ़ क्यों की। पता नहीं ससुर जी कितनी देर से उसकी जवानी का अपनी आंखों से रसपान कर रहे थे।

"अरे इसमें तकलीफ़ की क्या बात है। तुम चाय पी लो।" ये कह कर रामलाल चला गया।

कन्चन ने नोटिस किया की ससुर जी का लंड खड़ा हुआ था जिसको छुपाते हुए वो बाहर चले गये। कन्चन के दिमाग में एक प्लान आया। वो देखना चाहती थी की अगर ससुर जी को इस तरह का मौका मिल जाए तो वो किस हद तक जा सकते हैं। उस रात कन्चन ने सिर दर्द का बहाना किया और ससुर जी से सिर दर्द की दवा मांगी।

"पिता जी हमारे सिर में बहुत दर्द हो रहा है। सिर दर्द और नींद की गोली भी दे दीजिये।"

"हां बहु सिर दर्द के साथ तुम दो नींद की दो गोली ले लो ताकि रात में परेशानी ना हो।" कन्चन समझ गयी की ससुरजी नींद की दो गोली खाने के लिये क्यों कह रहे हैं। उसका प्लान सफ़ल होता नज़र आ रहा था। उसे पूरा विश्वास था की आज रात ससुर जी उसके कमरे में ज़रूर आएंगे। रात को सोने से पहले ससुर जी ने अपने हाथों से कन्चन को सिर दर्द और नींद की दो गोलिआं दी।

कन्चन गोलिआं ले कर अपने कमरे में आयी और गोलिओं को तो बाथरूम में फैंक दिया। ससुर जी को यह दिखाने के लिये कि वो सिर दर्द से बहुत परेशान और थकी हुई हई, कन्चन ने साड़ी उतार के पास पड़ी कुर्सी पे फैंक दी। फिर उसने अपनी पैंटी और ब्रा उतारी और बिस्तर के पास ज़मीन पर फैंक दी। ब्लाउज के सामने वाले तीन हुक्स में से दो हुक खोल दिये। अब तो उसकी बड़ी बड़ी चूचिआं ब्लाउज में सिर्फ़ एक ही हुक के कारण कैद थी। कन्चन का आज नाईटी के बजाये ब्लाउज और पेटिकोट में ही सोने का इरादा था ताकी ससुर जी को ऐसा लगे कि सिर दर्द और नींद के कारण उसने नाईटी भी नहीं पहनी। आज तो उसने अपने कमरे के बाहर की लाईट भी बन्द नहीं की ताकी थोड़ी रौशनी अन्दर आती रहे और ससुर जी उसकी जवानी को देख सकें। पूरी तयारी करके कन्चन ने अपने बाल भी खोल लिये और बिस्तर पर बहुत मादक ढंग से लेट गयी। वो पेट के बल लेटी हुई थी और उसने पेटिकोट इतना ऊपर चढ़ा लिया कि अब वो उसके चूतड़ों से दो इंच ही नीचे था। कन्चन की गोरी गोरी मांसल जांघें और टांगें पूरी तरह से नंगी थी।

ससुर जी के स्वागत की पूरी तैयारी हो चुकी थी। रात भी काफ़ी हो चुकी थी और कन्चन बड़ी बेसब्री से ससुर जी के आने का इन्त्ज़ार कर रही थी। वो सोच रही थी की ससुर जी उसको गहरी नींद में समझ कर क्या क्या करेंगे। रात को करीब एक बजे के आस पास कन्चन को अपने कमरे का दरवाज़ा खुलने की आवाज़ आई। उसकी सांसें तेज़ हो गयी। थोड़ा थोड़ा डर भी लग रहा था।

ससुर जी दबे पाओं कमरे में घुसे और सामने का नज़ारा देख के उनका दिल ज़ोर ज़ोर से धड़कने लगा। बहु इतनी थकी हुई और नींद में थी कि उसने नाईटी तक नहीं पहनी। पेट के बल पड़ी हुई बहु के चूतड़ों का उभार बहुत ही जान लेवा था। बाहर से आती हुई भीनी भीनी रोशनी में जांघों तक उठा हुआ पेटिकोट बहु की नंगी टांगों को बहुत ही मादक बना रहा था। बहु ऐसे टांगें फैला के पड़ी हुई थी कि थोड़ा सा पेटिकोट और ऊपर सरक जाता तो बहु की लाजवाब चूत के दर्शन हो जाते जिसकी झलक रामलाल पहले भी देख चुका था। आज मौका था जी भर के बहु की चूत के दर्शन करने का। रामलाल मन ही मन मना रहा था कि कहीं बहु कच्छी पहन के ना सो गयी हो। तभी उसकी नज़र बिस्तर के पास ज़मीन पे पड़ी हुई कच्छी और ब्रा पे पड़ गयी। रामलाल का लंड बुरी तरह से खड़ा हो गया था। रामलाल सोच रहा था कि बेचारी बहु इतनी नींद में थी कि कच्छी और ब्रा भी ज़मीन पे ही फेंक दिये। अब तो उसे यकीन था कि बहु पेटिकोट और ब्लाउज के नीचे बिकुल नंगी थी। सारा दिन ब्रा और कच्छी में कसी हुई जवानी को बहु ने रात को आज़ाद कर दिया था। और आज रात रामलाल बहु की आज़ाद जवानी के दर्शन करने का इरादा कर के आया था। फिर भी वो यकीन करना चाहता था की बहु गहरी नींद में सो रही है।

फिर भी वो यकीन करना चाहता था की बहु गहरी नींद में सो रही है।

उसने कन्चन को धीरे से पुकारा, "बहु! बहु! सो गयी क्या?"

कोई जबाब नहीं। अब रामलाल ने धीरे से कन्चन को हिलाया। अब भी बहु ने कोई हरकत नहीं की। रामलाल को यकीन हो गया कि नींद की गोली ने अपना काम कर दिया है। कन्चन आंखें बन्द किये पड़ी हुई थी। अब रामलाल की हिम्मत बढ़ गयी। वो बहु की कच्छी को उठा के सूघने लगा। बहु की कच्छी की गन्ध ने उसे मदहोश कर दिया। सारा दिन पहनी हुई कच्छी में चूत, पेशाब और शायद बहु की चूत के रस की मिली जुली खुश्बू थी। लौड़ा बुरी तरह से फनफनया हुआ था। रामलाल ने बहु की कच्छी को जी भर के चूमा और उसकी मादक गन्ध का आनंद लिया। अब रामलाल पेट के बल पड़ी हुई बहु के पैरों की तरफ़ आ गया। बहु की अल्हड़ जवानी अब उसके सामने थी। रामलाल ने धीरे धीरे बहु के पेटिकोट को ऊपर की ओर सरकना शुरु कर दिया। थोड़ी ही देर में पेटिकोट बहु की कमर तक ऊपर उठ चुका था। सामने का नज़ारा देख के रामलाल की आंखें फटी रह गयी। बहु कमर से नीचे बिल्कुल नंगी थी। आज तक उसने इतना खूबसूरत नज़ारा नहीं देखा था।

बहु के गोरे गोरे मोटे मोटे फैले हुए चूतड़ बाहर से आती हुई हल्की रोशनी में बहुत ही जान लेवा लग रहे थे। रामलाल अपनी ज़िन्दगी में कई औरतों को चोद चुका था लेकिन आज तक इतने सैक्सी नितम्ब किसी भी औरत के नहीं थे। रामलाल मन ही मन सोचने लगा की अगर ऐसी औरत उसे मिल जाए तो वो ज़िन्दगी भर उसकी गांड ही मारता रहे। लेकिन ऐसी किस्मत उसकी कहां? आज तक उसने किसी औरत की गांड नहीं मारी थी। मारने की तो बहुत कोशिश की थी लेकिन उसके गधे जैसे लंड को देख कर किसी औरत की हिम्मत ही नहीं हुई। पता नहीं बेटा बहु की गांड मारता है कि नहीं। उधर कन्चन का भी बुरा हाल था। उसने खेल तो शुरु कर दिया लेकिन अब उसे बहुत शरम आ रही थी और थोड़ा डर भी लग रहा था॥ हालांकि एक बार पहले वो ससुर जी को अपने नंगे बदन के दर्शन करा चुकी थी लेकिन उस वक्त ससुर जी बहुत दूर थे। आज तो ससुर जी अपने हाथों से उसे नंगी कर रहे थे। फैली हुई टांगों के बीच से चूत के घने बालों की झलक मिल रही थी। रामलाल ने बहुत ही हल्के से बहु के नंगे चूतड़ों पे हाथ फेरना शुरु कर दिया। कन्चन के दिल की धड़कन तेज़ होने लगी। रामलाल ने हल्के से एक उंगली कन्चन के चूतड़ों की दरार में फेर दी। लेकिन कन्चन जिस मुद्रा में लेटी हुई थी उस मुद्रा में उसकी गांड का छेद दोनों चूतड़ों के बीच बन्द था। आखिर कन्चन एक औरत थी।

एक मर्द का हाथ उसके नंगे चूतड़ों को सहला रहा था। अब उसकी चूत भी गीली होने लगी। अभी तक कन्चन अपनी दोनों टांगें सीधी लेकिन थोड़ी चौड़ी करके पेट के बल लेटी हुई थी॥ ससुर जी को अपनी चूत की झलक और अच्छी तरह देने के लिये अब उसने एक टांग मोड़ के ऊपर कर ली। ऐसा करने से अब कन्चन की चूत उसकी टांगों के बीच में से साफ़ नज़र आने लगी। बिल्कुल साफ़ तो नहीं कहेंगे, लेकिन जितनी साफ़ उस भीनी भीनी रोशनी में नज़र आ सकती थी उतनी साफ़ नज़र आ रही थी। गोरी गोरी मांसल जांघों के बीच घनी और लम्बी लम्बी झांटों से ढकी बहु की खूब फूली हुई चूत देख के रामलाल की लार टपकने लगी। हालांकि गांड का छेद अब भी नज़र नहीं आ रहा था। रामलाल ने नीचे झुक के अपना मुंह बहु की जांघों के बीच डाल दिया। बहु की झांटों के बाल उसकी नाक और होंठों को छू रहे थे। अब कुत्ते की तरह वो बहु की चूत सूघंने लगा। कन्चन की चूत काफ़ी गीली हो चुकी थी और अब उसमें से बहुत मादक खुश्बू आ रही थी। आज तक तो रामलाल बहु की पैंटी सूंघ कर ही काम चला रहा था लेकिन आज उसे पता चला की बहु की चूत की गन्ध में क्या जादू है। रामलाल को ये भी अच्छी तरह समझ आ गया कोई कुत्ता कुतिआ को चोदने से पहले उसकी चूत क्यों सूंघता है।

रामलाल ने हिम्मत करके हल्के से बहु की चूत को चूम लिया। कन्चन इस के लिये तैयार नहीं थी। जैसे ही रामलाल के होंठ उसकी चूत पे लगे वो हड़बड़ा गयी। रामलाल झट से चारपायी के नीचे छुप गया। कन्चन अब सीधी हो कर पीठ के बल लेट गयी लेकिन अपना पेटिकोट जो कि कमर तक उठ चुका था नीचे करने की कोई कोशिश नहीं की। रामलाल को लगा की बहु फिर सो गयी है तो वो फिर चारपायी के नीचे से बाहर निकला। बाहर निकल के जो नज़ारा उसके सामने था उसे देख के वो दंग रह गया। बहु अब पीठ के बल पड़ी हुई थी। पेटिकोट पेट तक ऊपर था ओर उसकी चूत बिल्कुल नंगी थी। रामलाल बहु की चूत देखता ही रहा गया। घने काले लम्बे लम्बे बालों से बहु की चूत पूरी तरह ढकी हुई थी। बाल उसकी नाभी से करीब तीन इन्च नीचे से ही शुरु हो जाते थे। रामलाल ने आज तक किसी औरत की चूत पे इतने लम्बे और घने बाल नहीं देखे थे। पूरा जंगल उगा रखा था बहु ने। ऐसा लग रहा था मानो ये घने बाल बुरी नज़रों से बहु की चूत की रक्षा कर रहे हों। अब रामलाल की हिम्मत नहीं हुई की वो बहु की चूत को सहला सके क्युंकि बहु पीठ के बल पड़ी हुई थी और अब अगर उसकी आंख खुली तो वो रामलाल को देख लेगी। बहु के होंठ थोड़े थोड़े खुले हुए थे। रामलाल बहु के उन गुलाबी होंठों को चूसना चाहता था लेकिन ऐसा कर पाना मुश्किल था। फिर अचानक रामलाल के दिमाग में एक प्लान आया। उसने बहु का पेटिकोट धीरे से नीचे करके उसकी नंगी चूत को ढक दिया। अब उसने अपना फनफनाता हुआ लौड़ा अपनी धोती से बाहर निकाला और धीरे से बहु के खुले हुए गुलाबी होंठों के बीच टिका दिया।

कन्चन को एक सेकेन्ड के लिये समझ नहीं आया की उसकी होंठों के बीच ये गरम गरम ससुर जी ने क्या रख दिया लेकिन अगले ही पल वो समझ गयी की उसके होंठों के बीच ससुर जी का तना हुआ लौड़ा है। मर्द के लंड का टेस्ट वो अच्छी तरह पहचानती थी। अपने देवर का लंड वो ना जाने कितनी बार चूस चुकी थी। वो एक बार फिर हड़बड़ा गयी लेकिन इस बार बहुत कोशिश करके वो बिना हिले आंखें बन्द किये पड़ी रही। ससुर जी के लंड के सुपाड़े से निकले हुए रस ने कन्चन के होंठों को गीला कर दिया। कन्चन के होंठ थोड़े और खुल गये। रामलाल ने देखा की बहु अब भी गहरी नींद में है तो उसकी हिम्मत और बढ़ गयी। बहु के होंठों की गर्मी से उसका लंड बहु के मुंह में घुसने को उतावला हो रहा था। रामलाल ने बहुत धीरे से बहु के होंठों पे अपने लंड का दबाव बढ़ाना शुरु किया। लेकिन लंड तो बहुत मोटा था। मुंह में लेने के लिये कन्चन को पूरा मुंह खोलना पड़ता। रामलाल ने अब अपना लंड बहु के होंठों पे रगड़ना शुरु कर दिया और साथ में उसके मुंह में भी घुसेड़ने की कोशिश करने लगा। रामलाल के लंड का सुपाड़ा बहु के थूक से गीला हो चुका था। कन्चन की चूत बुरी तरह गीली हो गयी थी। उसका अपने ऊपर कन्ट्रोल टूट रहा था। उसका दिल कर रहा था की मुंह खोल के ससुर जी के लंड का सुपाड़ा मुंह में लेले। अब नाटक खत्म करने का वक्त आ गया था।

कन्चन ने ऐसा नाटक किया जैसे उसकी नींद खुल रही हो। रामलाल तो इस के लिये तैयार था ही। उसने झट से लंड धोती में कर लिया। बहु का पेटिकोट तो पहले ही ठीक कर दिया था। कन्चन ने धीरे धीरे आंखें खोली और ससुर जी को देख कर हड़बड़ा के उठ के बैठने का नाटक किया। वो घबराते हुए अपने अस्त व्यस्त कपड़े ठीक करते हुए बोली, "पिताजी...अआप? यहां क्या कर रहे हैं?"

"घबराओ नहीं बेटी, हम तो देखने आए थे कि कहीं तुम्हारी तबियत और ज़्यादा तो खराब नहीं हो गयी। कैसा लग रहा है?" रामलाल बहु के माथे पे हाथ रखता हुआ बोला जैसे सचमुच बहु का बुखार चैक कर रहा हो।

कन्चन के ब्लाउज के तीन हुक खुले हुए थे। वो अपनी चूचिओं को ढकते हुए बोली,"जी। मैं अब बिल्कुल ठीक हूं। नींद की गोलिआं खा के अच्छी नींद आ गयी थी। लेकिन आप इतनी रात को...?"

"हां बेटी, बहु की तबियत खराब हो तो हमें नींद कैसे आती। सोचा देख लें तुम ठीक से सो तो रही हो।"

"सच पिता जी आप कितने अच्छे हैं। हम तो बहुत भाग्यशाली हैं जिसे इतने अच्छे सास और ससुर मिले।"

"ऐसा ना कहो बहु। तुम रोज़ हमारी इतनी सेवा करती हो तो क्या हम एक दिन भी तुम्हारी सेवा नहीं कर सकते? हमारी अपनी बेटी होती तो क्या हम ये सब नहीं करते" रामलाल प्यार से बहु की पीठ सहलाते हुए बोला। कन्चन मन ही मन हंसते हुए सोचने लगी, अपनी बेटी को भी आधी रात को नंगी करके उसके मुंह में लंड पेल देते?

"पिताजी हम बिल्कुल ठीक हैं। आप सो जाइये।"

"अच्छा बहु हम चलते हैं। आज तो तुमने कपड़े भी नहीं बदले। बहुत थक गयी होगी।"

"जी सिर में बहुत दर्द हो रहा था।"

"हम समझते हैं बहु। अरे ये क्या? तुम्हारी कच्छी और ब्रा नीचे ज़मीन पे पड़ी हुई है।" रामलाल ऐसे बोला जैसे उसकी नज़र बहु की कच्छी और ब्रा पर अभी पड़ी हो। रामलाल ने बहु की कच्छी और ब्रा उठा ली।

"जी हमें दे दीजिये।" कन्चन शर्माते हुए बोली।

"तुम आराम करो हम धोने डाल देंगे। लेकिन ऐसे अपनी कच्छी मत फ़ेंका करो। वो काला नाग सूंघता हुआ आ जाएगा तो क्या होगा? उस दिन तो तुम बच गयी नहीं तो टांगों के बीच में ज़रूर काट लेता।"

कन्चन ने मन ही मन कहा वो काला नाग काटे या ना काटे लेकिन ससुर जी की टांगों के बीच का काला नाग ज़रूर किसी दिन काट लेगा। रामलाल बहु की कच्छी और ब्रा ले के चला गया। कन्चन अच्छी तरह जानती थी कि उसकी कच्छी का क्या हाल होने वाला है। रामलाल बहु की कच्छी अपने कमरे में ले गया और उसकी मादक खुश्बू सूंघ के अपने लंड के सुपाड़े पे रख के रगड़ने लगा। हमेशा की तरह ढेर सारा वीर्य बहु की कच्छी में उड़ेल दिया और लंड कच्छी से पोंछ के उसे धोने में डाल दिया। कच्छी की दास्तान कन्चन को अगले दिन कपड़े धोते समय पता लग गयी।

कंचन : बेटी बहन भाभी से बहू तक का सफ़र - 28

"लेकिन सासु मां के साथ ससुर जी ने ऐसा धोखा क्यों किया?"

"बहु रानी जब औरत अपने पति की प्यास नहीं बुझा पाती है तो उसे मजबूर हो कर दूसरी औरतों की ओर देखना पड़ता है। आपकी सासु मां धार्मिक स्वभाव की है। उसे चुदाई में कोई दिलचस्पी नहीं है। बेचारे बाबू जी क्या करते?"

"धार्मिक स्वभाव का ये मतलब थोड़े ही होता है की अपने पति की ज़रूरत का ध्यान ना रखा जाए।"

"वोही तो मैं भी कह रही हूं बहु रानी। मर्द लोग तो उसी औरत के गुलाम हो जाते हैं जो बिस्तर में बिल्कुल रंडी बन जाए।"

कमला अब कन्चन की चूत और उसके चारों ओर के घने बालों की मालिश कर रही थी। कन्चन की चूत बुरी तरह गीली हो गयी थी। थोड़ी देर इस तरह मालिश करने के बाद बोली, "चलो बहु रानी अब सीधी हो के पीठ पे लेट जाओ।"

कन्चन सीधी हो कर पीठ पे लेट गयी। उसके बदन पे एक भी कपड़ा नहीं था। बिल्कुल नंगी थी, लेकिन अब वो इतनी उत्तेजित हो चुकी थी की उसे किसी बात की परवाह नहीं थी। जैसे ही कन्चन पीठ पे लेटी कमला तो उसके बदन को देखती ही रह गयी। क्या गदराया हुआ बदन था। बड़ी बड़ी चूचिआं छाती के दोनों ओर झूल रही थी। कन्चन की झांटें देख कर तो कमला चौंक गयी। नाभी से थोड़ा नीचे से ही घने काले काले बाल शुरु हो जाते थे। कमला ने आज तक कभी इतनी घनी और लम्बी झांटें नहीं देखी थी। चूत तो पूरी तरह से ढकी हुई थी।

"हाय राम! बहु रानी ये क्या जंगल उगा रखा है? आप क्यों अपनी चूत ढकने की कोशिश कर रही थी? इन घने बालों में से तो कुछ भी नज़र नहीं आता है।" ये कहते हुए कमला ने ढेर सारा तेल कन्चन की झांटों पे डाल दिया और दोनों हाथों से झांटों की मालिश करने लगी।

"आह.....आआहहह ऊऊइइइइइ इइइस्स्स्स्स्स्स।"

"बहु रानी आप अपनी झांटों में कभी तेल नहीं लगाती?"

"हट पागल, वहां भी कोई तेल लगाता है क्या.... आइइइई ?"

"बहु रानी जैसे सिर के बाल औरत की खूबसूरती बढ़ाते हैं, वैसे ही झांटें औरत की चूत की खूबसूरती पे चार चान्द लगा देती हैं। चूत के ऊपर सूखे सूखे बाल तो किसी मर्द को नहीं रिझा सकते। जितना ध्यान आप अपने बालों का रखती हो उतना ही ध्यान अपनी झांटों का भी रखना चाहिये। अब तो कन्चन ने टांगें खूब चौड़ी कर रखी थी मानो चुदवाने के लिये लेटी हो। कमला, कन्चन की चूत को ज़ोर ज़ोर से मसल के मालिश कर रही थी। कन्चन की चूत के रस से उसकी झांटें गीली हो रही थी।

"सच कमला तू तो बहुत अच्छी मालिश करती है। आआआह.... बहुत मज़ा आ रहा है। लेकिन एक बात बता, मर्दों को औरत की झांटें क्यों इतनी अच्छी लगती हैं?"

"बहु रानी औरत की चूत के बाल ही उसकी चूत की खुश्बू को समेते रहते हैं। आपने देखा नहीं कुत्ता कैसे कुतिआ की चूत की गन्ध सून्घ कर उसके पीछे पीछे घूमता रहता है? लेकिन आपकी चूत पे बाल इतने घने और लम्बे हैं की आपकी चूत तो नज़र आती ही नहीं"।

"कमला, तू मेरी चूत देख कर क्या करेगी?" कन्चन हंसती हुई बोली।

"अरे बहु रानी मैं तो नहीं लेकिन आपके पति देव तो देखेंगे। मर्द को औरत की झांटें तो अच्छी लगती हैं लेकिन उसे चूत की फांके, उसके बीच का कताव और चूत का छेद तो नज़र आना चाहिये। मर्द को औरत की चूत के अन्दर बाहर होता हुआ अपना लंड देखने में बहुत मज़ा आता है। लाओ मैं आपकी झांटें इस तरह से काट देती हूं की आपकी चूत नज़र आने लगे। फिर देखना आपके पति आप पे कैसे फिदा रहते हैं।"

"हाय राम ! कमला तू मेरे साथ क्या क्या कर रही है?" कमला ने पास पड़ी कैंची उठा ली और कन्चन की टांगें चौड़ी करके उसकी चूत के बाल काटने लगी। अब कन्चन की चूत की दोनों फांके, चूत का कटाव और उसके बीच का गुलाबी छेद साफ़ नज़र आने लगा। कमला उसकी फूली हुई चूत देख कर दंग रह गयी। उसने और ढेर सारा तेल कन्चन की चूत पे डाल दिया और उसकी मालिश करने लगी।

"उइइइइइआआह.... इइइइइस्स्स्स.... कमलाआआ क्यों तंग कर रही है ?"

"सच बहु रानी आपकी चूत पे तो मेरा ही दिल आ गया है। सोचिये आपके पति का क्या हाल होग? एक बात पूछूं? बुरा तो नहीं मानोगी?"

"पूछ कमला तेरी बात का का बुरा मैं कभी नहीं मान सकती। इस्स्स....आआअह"

"आपके पति तो आपको रोज़ कम से कम तीन चार बार चोदते होंगे?"

"क्यों तू ये कैसे कह सकती है?"

"आप का बदन है ही इतना गदराया हुआ की कोई भी मर्द रोज़ चोदे बिना नहीं रह सकता।"

"मैं तुझे क्यों बताऊं? पहले तू बता की तूने ससुर जी के लंड की मालिश कैसे शुरु कर दी? और अगर लंड की मालिश करती है तो तुझे उन्होनें चोदा भी ज़रूर होगा?"

"अरे बहु रानी बाबू जी की मालिश तो एक इत्तेफ़ाक है। मैने आपको बताया था ना की मैं बाबुजी के लिये लड़कियां पटा के लाती थी। अक्सर बाबू जी एक दिन में तीन तीन लड़किओं को चोदते थे। ज़रा सोचो, हर लड़की को सिर्फ़ दो बार भी चोदें तब भी उन्हें छः बार चुदाई करानी पड़ती थी। इतनी चुदाई के बाद आदमी थक तो जाता ही है। बाबू जी जानते थे की मैं बहुत अच्छी मालिश करती हूं इसलिये मुझे मालिश के लिये बोल देते थे। एक दिन बाबु जी बोले ’कमला बुरा ना मानो तो वहां भी मालिश कर दो। उस लड़की की बहुत टाईट थी, लंड में दर्द हो रहा है।’। मेरे तो मन की मुराद पूरी हो गयी। मैं चुदने के बाद कई औरतों की हालत देख चुकी थी और उनसे बाबू जी के लंड के बारे में सुन चुकी थी। जब मैनें मालिश करने के लिये उनकी धोती खोली तो बेहोश होते होते बची। सिकुड़ा हुआ लंड भी इतना मोटा और भयंकर लग रहा था। जब मैनें मालिश शुरु की तो लंड धीरे धीरे खड़ा होने लगा। पूरा तन जाने के बाद तो मुझे दोनों हाथों से मालिश करनी पड़ रही थी। बाप रे! मोटा काला, कितना विशाल लंड था। मेरी मालिश से बाबू जी बहुत खुश हुए और उसके बाद से किसी को भी चोदने से पहले मैं उनके लंड की मालिश करके उसे चुदाई के लिये तैयार करने लगी। काश भगवान ने मुझे अच्छा बदन दिया होता और मैं भी बाबू जी को रिझा पाती। दिल तो बहुत करता था की वो गधे जैसा लंड मेरी चूत में भी जाए पर औरत जात हूं ना, बाबू जी ने कभी मुझे चोदने की इच्छा नहीं जताई और मैं उनसे कैसे कहती की मुझे चोदो।"

"बात तो तेरी ठीक है। एक रंडी भी ये नहीं कहती की मुझे चोदो। लेकिन ये बता तूने ससुर जी को चोदते हुए तो ज़रूर देखा होगा।?"

"हां बहु रानी देखा तो है। इसी कमरे के बगल में जो कमरा है वहां से इस कमरे में झांक सकते हैं। जिस चारपायी पे आप लेटी हो उसी चारपायी पे बाबू जी ने अपनी साली को ना जाने कितनी बार चोदा है।"

"सच कमला! कुछ बता ना कैसा लगता था?" अब तो कन्चन की चूत बुरी तरह से गीली हो चुकी थी। ससुर जी के गधे जैसे मोटे काले लंड की कल्पना से ही कन्चन के बदन में आग लग गयी थी।

कमला इस बात को अच्छी तरह जानती थी। आखिर वो भी मंझी हुइ खिलाड़ी थी। कन्चन की चूत को मसलते हुए बोली, "हाय बहु रानी क्या बताऊं। बेचारी १७ साल की कमसिन लड़की थी जब बाबुजी के मूसल ने उसकी कुंवारी चूत को रौंदा था। बिल्कुल नाज़ुक सी चूत थी उसकी जैसे किसी बच्ची की हो। लेकिन चार साल चुदने के बाद क्या फूल गयी थी और चौड़ी हो गयी थी। अब तो जब भी चुदवाने के लिये टांगें चौड़ी करती थी, उसकी चूत का खुला हुआ छेद नज़र आने लगता था मानो चूत मुंह फाड़े लंड को खाने का इन्तज़ार कर रही हो। बहुत ही मज़े ले कर चुदवाती थी। पहली बार तो मुझे विश्वास ही नहीं हुआ की बाबु जी का इतना लम्बा लंड उसकी चूत में जा भी पाएगा। सच बहु रानी साली की चूत में पूरा लंड जाते मैनें इन आखों से देखा है। जब पूरा लंड घुस जाता था तो बाबू जी के सांड के माफ़िक बड़े बड़े टट्टे साली के चूतड़ों से चिपक जाते थे।

"टट्टे क्या होते हैं?"

"अरे मर्द के लंड के नीचे जो लटकते हैं? वहीं तो सड़का बनता है।"

"ओह! समझी।"

"क्या फच.. फच.. फच.. की आवाजें आती थी। हर धक्के के साथ बाबुजी के झूलते हुए टट्टे मानो साली के चूतड़ों पर मार लगाते थे। जब बाबुजी झड़े तो ढेर सारा वीर्य साली की चूत में से बह कर बाहर चारपायी पे गिरने लगा। ऊफ क्या जानलेवा नज़ारा था।"

"हाय! कमला कितनी बार तूने साली की चुदाई देखी?"

"सिर्फ़ दो बार। उसके बाद बाबुजी को पता चल गया। फिर उन्होनें साली को पम्प हाउस में चोदना शुरु कर दिया।"

आज की मालिश ने और कमला की बातों ने कन्चन के बदन में एक अजीब सी आग लगा दी थी। कन्चन की चुदाई हुए अब एक महीने से भी ज़्यादा हो चुका था।

कुछ दिनों बाद कन्चन के पति का फोन आया। ससुर जी ने कन्चन को बताया की राकेश का फोन है। कन्चन ने अपने कमरे में जा कर फोन का रिसीवर उठा लिया। उधर रामलाल ने भी अपने कमरे का रिसीवर नीचे नहीं रखा और बहु और बेटे की बातें सुनने लगा।

राकेश बोल रहा था, "कन्चन मेरी जान ससुराल जा कर तो तुम हमें भूल ही गयी हो। अब तो एक महीना बीत गया है और कितना तड़पाओगी? बहुत याद आ रही है तुम्हारी।"

"अच्छा जी! बड़ी याद आ रही है आपको मेरी। अचानक इतनी याद क्यों आ रही है?"

"खूबसूरत बीवी से एक महीना अलग रहना तो बहुत मुश्किल होता है मेरी जान। सच, सारा दिन खड़ा रहता है तुम्हारी याद में।"

"आपका वो तो पागल है। उसे कहिये एक महीना और इन्तज़ार करे।"

"ऐसे ना कहो मेरी जान एक महीना और इन्तज़ार करना तो बहुत मुश्किल है।"

"तो फिर अभी कैसे काम चल रहा है?"

"अभी तो मैं तुम्हारी पैंटी से ही काम चला रहा हूं।"

"हाय...! आपने फिर मेरी पैंटी ले ली। जिस दिन वहां से चली थी उस दिन सुबह नहाने से पहले पैंटी उतारी थी। सोचा था गावं में जा के धो लूंगी। गंदी ही सुटकेस में रख ली थी। यहां आ के देखा तो पैंटी गायब थी।"

"बड़ी मादक खुश्बू है तुम्हारी पैंटी की। याद है रात को उतावलेपन में जब पहली बार तुम्हें चोदा था तो पैंटी उतारने की भी फुर्सत नहीं थी, बस चूत के ऊपर से पैंटी को साईड में करके ही पेल दिया था तुम्हारी फूली हुई चूत में"

"अच्छी तरह याद है मेरे राजा। अब आप इस पैंटी को भी फाड़ दोगे? अब तक दो पैंटी तो पहले ही फाड़ चुके हो।"

"कन्चन मेरी जान इस बार आओगी तो पैंटी नहीं तुम्हारी चूत ही चोद चोद के फाड़ दुंगा।"

"सच! मैं भी तो यही चाहती हूं।"

"क्या चाहती हो मेरी जान?"

"कि आप मेरी..... हटिये भी! आप बहुत चालाक हैं।"

"बोलो ना मेरी जान फोन पर भी शर्मा रही हो।"

"आप तो बस मेरे मुंह से गन्दी गन्दी बातें सुनना चाहते हैं।"

"हाय! जब चुदवाने में कोई शरम नहीं तो बोलने में कैसी शरम? तुम्हारे मुंह से सुन के शायद मेरे लंड को कुछ शान्ति मिले। बोलो ना मेरी जान तुम भी क्या चाहती हो?"

"ऊफ! आप भी बस। मैं भी तो चाहती हूं की आप मुझे इतना चोदें की मेरी.... मेरी चूत फट जाए। मैं... मेरी चूत अब आपके उसके लिये बहुत तड़प रही है।"

"किसके लिये मेरी जान।"

"आपके ल्ल..लंड के लिये, और किसके लिये।" कन्चन मुस्कुराते हुए बोली।

"सच कन्चन अब और नहीं सहा जाता। मालूम है इस वक्त भी तुम्हारी पैंटी मेरे खड़े हुए लंड पे लटक रही है।"

"हाय राम, मेरी पैंटी की किस्मत भी मेरी चूत की किस्मत से अच्छी है। अगर आपने मुझे पहले ही बुला लिया होता तो इस वक्त आपके लंड पे पैंटी नहीं मेरी चूत होती।"

"कोई बात नहीं, इस बार जब आओगी तो इतना चोदुंगा की तंग आ जाओगी। बोलो मेरी जान जी भर के दोगी ना?"

"हां मेरे राजा आप लेंगे तो क्यों नहीं दूंगी। मैनें तो सिर्फ़ टांगें चौड़ी करनी हैं, बाकी सारा काम तो आप ही ने करना है।"

"ऐसा ना कहो मेरी जान। चूत देने की कला तो कोई तुमसे सीखे।

"अच्छा जी! तो अपनी बीवी को चोदना इतना अच्छा लगता है? वैसे यहां एक औरत कमला है जो मालिश बहुत अच्छी करती है। मेरे पूरे बदन की मालिश करती है। यहां तक की मेरी चूत की भी मालिश कर दी। कहती है ’बहु रानी आपकी चूत की मालिश करके मैं इसे ऐसा बना दूंगी की आपके पति हमेशा आपकी चूत से ही चिपके रहेंगे।’ तो मैंने उससे कहा की मैं भी तो यही चाहती हूं। वर्ना हमारे पति देव को तो हमारी चूत की याद महीने में एक दो बार ही आती है। ठीक कहा ना जी? उसने चूत के बालों पे भी कुछ किया है।"

"क्या किया है मेरी जान बताओ ना।"

"मैं क्यों बताऊं? खुद ही देख लीजियेगा। लेकिन चूत पे से पैंटी साईड में करके पेलने से नहीं पता चलेगा। ये देखने के लिये तो पूरी नंगी करके ही चोदना पड़ेगा।"

"एक बार आ तो जाओ मेरी जान, अब कपड़ों की ज़रूरत नहीं पड़ेगी। हमेशा नंगी ही रखुंगा।"

"हाय! ऐसी बातें ना करिये। मेरी चूत बिल्कुल गीली हो गयी है। आपके पास तो मेरी पैंटी है, मेरे पास तो कुछ भी नहीं है।"

"वहां गावं में किसी को ढूंढ लो।" राजेश मज़ाक करता हुआ बोला।

"छी कैसी बातें करते हैं? वैसे आपके गावं में आदमी कम गधे ज़्यादा नज़र आते हैं। एक दिन तो हद ही हो गयी। मैं खेत में जा अही थी। मेरे आगे आगे एक गधा और गधी चल रहे थे। गधे का लंड खड़ा हुआ था। बाप रे! तीन फ़ूट से भी लम्बा होगा। बिल्कुल ज़मीन पे लगने को हो रहा था। अचानक वो आगे चल रही गधी पे चढ़ गया और पूरा तीन फ़ूट का लंड उसकी चूत में पेल दिया। सच मेरी तो चीख ही निकल गयी। ज़िन्दगी में पहली बार इतना लम्बा लंड किसी के अन्दर जाता देखा।"

"तुम अपना ध्यान रखना मेरी जान। खेतों में अकेली मत जाना। तुम्हारे कातिलाना चूतड़ों को देख के कोई गधा तुम पे ना चढ़ जाए। कहीं तुम्हारी चूत में तीन फ़ुट का लंड पेल दिया तो?" राजेश हंसता हुआ बोला।

"हटिये, आप तो बड़े वो हैं! आपको तो शरम भी नहीं आती। जिस दिन सचमुच किसी गधे ने मेरे अन्दर तीन फ़ुट का लंड पेल दिया ना उस दिन के बाद मेरी चूत इतनी चौड़ी हो जाएगी की आपके काबिल नहीं रह जाएगी। बोलिये मंज़ूर है?"

"अगर तुम्हारी चूत की प्यास गधे के लंड से बुझ जाती है तो मुझे मंज़ूर है। मैं तो तुम्हें खुश और तुम्हारी चूत को तृप्त देखना चाहता हूं।"

"जाईये भी हम आपसे नहीं बोलते।"

"नाराज़ मत हो मेरी जान मैं तो मज़ाक कर रहा था।"

"अच्छा अब फोन रखिये मुझे खाना भी बनना है।"

"ठीक है मेरी जान, दो तीन दिन बाद फिर फोन करुंगा। बाय।"

राजेश ने फोन रख दिया।

राजेश की बातें सुन कर कन्चन की चूत गीली हो गयी थी। वो रिसीवर रखने ही वाली थी की उसे एक और क्लिक की आवाज़ सुनई दी। ज़रूर कोई और भी उनकी बातें सुन रहा था। कन्चन के घर तो एक्सटेन्शन था नहीं। फोन का एक्सटेन्शन तो यहीं ससुराल में था। वो भी ससुर जी के कमरे में। तो क्या ससुर जी उनकी बातें सुन रहे थे? बाप रे, अगर ससुर जी ने उनकी बातें सुन ली तो क्या सोच रहे होंगे? उधर रामलाल बहु के मुंह से ऐसी सैक्सी बातें सुन कर हैरान रह गया। आखिर बहु उतनी भी भोली नहीं थी जितनी शक्ल से लगती थी।

अब रामलाल बहु को छुप छुप के देखने के चक्कर में रहता था। एक रात कन्चन देर तक जाग रही थी। शायद नोवेल पढ़ रही थी। सब लोग सो गये थे। रामलाल की आंखों में नींद कहां? वो बिस्तर पर लेटा करवटें बदल रहा था। तभी उसे बहु के कमरे में हरकत सुनाई दी। रामलाल ध्यान से देखने लगा। बहु के कमरे का दरवाज़ा खुला और वो रामलाल के कमरे के बगल वाले बाथरूम की ओर जा रही थी। बहु के हाथ में कोई सफ़ेद सी चीज़ थी। ऐसा लग रहा था जैसे उसकी कच्छी हो। बहु ने बाथरूम में घुस के दरवाज़ा बन्द कर लिया। रामलाल जल्दी से दबे पांव उठा और बाथरूम के दरवाज़े से कान लगा कर सुनने लगा। इतने में स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स की आवाज़ आने लगी। बहु पेशाब कर रही थी। बहु के पेशाब के लिये पैर फैला कर बैठने और उसकी चूत के खुले हुए होंठों के बीच से निकलती हुई पेशाब की धार की कल्पना से ही रामलाल का लौड़ा तन गया। जैसे ही बहु के मूतने की आवाज़ बन्द हुई रामलाल जल्दी से अपने कमरे में जा कर लेट गया। इतने में बहु बाथरूम से बाहर आई ओर अपने कमरे की ओर जाने लगी। उसके हाथ में वो सफ़ेद चीज़ अब नहीं थी।

अपने कमरे में जा कर बहु ने दरवाज़ा बन्द कर लिया और लाईट भी बन्द कर दी। शायद सोने जा रही थी। रामलाल फिर से उठा और बाथरूम में गया। उसका अन्दाजा सही निकला। एक कोने में धोने के कपड़ों में बहु की सफ़ेद कच्छी पड़ी हुई थी। रामलाल ने बाथरूम का दरवाज़ा अन्दर से बन्द किया और बहु की कच्छी को उठा लिया। अभी तक उस कच्छी में गर्माहट थी। शायद अभी अभी उतारी थी। रामलाल ध्यान से कच्छी को देखने लगा। कच्छी में दो लम्बे काले बाल फंसे हुए थे। कम से कम चार इन्च लम्बे तो थे ही। ये देख कर रामलाल का लंड हरकत करने लगा। बाप रे ये तो बहु की चूत के बाल थे। इसका मतलब बहु की चूत पे खूब लम्बे और घने बाल हैं। कच्छी का जो हिस्सा बहु की चूत पे रगड़ता था वहां गहरे पीले रंग का दाग सा था। शायद बहु की पेशाब और चूत के रस का दाग था। रामलाल ने दोनों बाल निकाल लिये और कच्छी को सूंघने लगा। उफ क्या जानलेवा गन्ध थी। ये तो बहु की चूत की खुश्बू थी। रामलाल औरत की चूत की गन्ध अच्छी तरह पहचानता था। रामलाल ने जी भर के बहु की कच्छी को सून्घा और फिर उस जगह को अपने लौड़े के सुपाड़े पे टिका दिया जहां कुछ देर पहले बहु की चूत थी। रामलाल ने कच्छी को अपने लंड पे खूब रगड़ा। उसे ऐसा महसूस हो रहा था मानो बहु की चूत पे अपना लंड रगड़ रहा हो। कच्छी इतने नाज़ुक थी की रामलाल को डर था कहीं उसका मोटा फौलादी लौड़ा बहु की कच्छी ना फाड़ दे। कुछ देर कच्छी को लंड पे रगड़ने और बहु की चूत की कल्पना करके रामलाल अपने को कन्ट्रोल ना कर सका और उसने ढेर सारा वीर्य कच्छी में उड़ेल दिया। फिर उसने कच्छी धोने में डाल दी और वापस अपने कमरे में चला गया।

अगले दिन जब कन्चन अपने कपड़े धोने लगी तो उसे अपनी पैंटी पे दाग नज़र आया। ऐसा दाग तो मर्द के वीर्य का होता है। कन्चन सोच में पड़ गयी कि ये दाग उसकी पैंटी में कैसे आया। घर में तो सिर्फ़ एक ही मर्द था और वो थे ससुर जी। कहीं ससुर जी तो नहीं लेकिन वो उसकी पैंटी के साथ क्या कर रहे थे? कहीं ये उसका वहम तो नहीं था? लेकिन कन्चन को शक होता जा रहा था की ससुर जी उस पर फिदा होते जा रहे हैं। कन्चन के बदन को ऐसे देखते थे जैसे आंखों से ही चोद रहे हों। अब तो बात बात पे कन्चन की पीठ और चूतड़ों पे हाथ फेरने लगे थे। कभी कन्चन की पीठ पे हाथ रख के उसकी ब्रा को फ़ील करते हुए कहते "हमारी बहु रानी बहुत अच्छी है", कभी उसकी पतली कमर में हाथ डाल के कहते "हम बहु के बिना ना जाने क्या करेंगे", कभी कन्चन के चूतड़ों पे हाथ रख कर कहते "जाओ बहु अब आराम कर लो"।

जब से कन्चन ने कमला से ससुर जी के कारनामे सुने थे तुब से वो भी ससुर जी को एक औरत की नज़र से देखने लगी थी। ससुर जी के विशाल लंड के वर्णन ने तो उसकी नींद ही हराम कर दी थी। कन्चन को समझ नहीं आ रहा था की वो क्या करे। ससुर जी तो पिता के समान थे। लेकिन कन्चन के बदन को ललचायी नज़रों से देखना, बात बात पे उसके चूतड़ों पे हाथ फेरना, फोन पे चुपके से उसकी बातें सुनना, और अक्सर ऐसी बातें करना जो कोई ससुर अपनी बहु के साथ नहीं करता, और फिर उसकी पैंटी पे वीर्य का वो दाग, इस बात को साफ़ करता था की ससुर जी का दिल उसपे आ गया है। कन्चन के मन में ये बातें चल रही थी की एक रोज़ जब कन्चन सवेरे जल्दी सो के उठ गयी और उसने खिड़की के बाहर झांका तो देखा की ससुर जी आन्गन में खुली हवा में कसरत कर रहे हैं। कन्चन उत्सुक्तावश पर्दे के पीछे से उन्हें देखने लगी। ससुर जी ने सिर्फ़ एक लंगोट पहन रखा था। कन्चन उनका बदन देख कर हैरान रह गयी। ससुर जी लम्बे चौड़े थे। उनका बदन काला और बिल्कुल गठा हुआ था। लेकिन सबसे ज़्यादा हैरान हुई ससुर जी के लंगोट का उभार देख कर। ऐसा लगता था की जो कुछ भी लंगोट के अन्दर कैद था वो खासा बड़ा था।

कन्चन को कमला की बातें याद आने लगी। उसके बदन में चीटियां रेंगने लगी। कन्चन को विश्वास होने लगा की ससुर जी का लंड ज़रूर ही काफ़ी बड़ा होगा क्युंकि उसके पति राकेश का लंड भी ८ इन्च का था और देवर रामु का लंड तो १० इन्च का था। बाप का लंड बड़ा होगा इसिलिये तो बच्चों का भी इतना बड़ा है। और अगर साली पहली चुदाई में बेहोश हो गयी थी तुब तो ज़रूर ही बहुत बड़ा होगा। पहली बार कन्चन के मन में इच्छा जागी की काश वो ससुर जी का लंड देख सकती। कन्चन को ससुराल आए एक महीने से ज़्यादा हो चला था। अब वो रोज़ सुबह जल्दी उठ जाती और पर्दे के पीछे से ससुर जी को कसरत करते देखती। कन्चन मन ही मन कल्पना करती कि ससुर जी का लंड भी गधे के लंड जैसा खासा लम्बा, मोटा और काला होगा। लेकिन क्या देवर रामु के लंड से भी बड़ा होग? आखिर एक मर्द का लंड कितना बड़ा हो सकता है? कन्चन का विचार पक्का होता जा रहा था कि किसी ना किसी दिन तो वो ससुर जी के लंड के दर्शन ज़रूर करेगी।

हालांकी अब कन्चन को विश्वास हो गया था की ससुर जी अपनी जवान बहु पर फ़िदा हो चुके हैं लेकिन फिर भी वो उनकी परीक्षा लेना चाहती थी। पर्दा तो अब भी करती थी लेकिन अब वो ससुर जी के सामने जाने से पहले अपनी चुन्नी से सिर इस प्रकार से ढ़कती की उसकी छाती पूरी तरह खुली रहे। ससुरजी के लिये दूध का ग्लास टेबल पे रखने के लिये इस तरह से झुकती की ससुर जी को उसके ब्लाउज के अन्दर झांकने का पूरा मौका मिल जाए। वो अक्सर चूड़ीदार पहनती थी क्युंकि ससुरजी ने एक दिन उसको कहा था ’बहु चूड़ीदार में तुम बहुत सन्दर लगती हो। सच तुम्हारा ये चूड़ीदार और कुर्ता तो तुम्हारी जवानी में चार चांद लगा देता है।’ ससुर जी के सामने अपने चूतड़ों को कुछ ज़्यादा ही मटका के चलती थी। पर्दा करने का कन्चन को बहुत फायदा था, क्युंकि वो तो चुन्नी के अन्दर से ससुरजी पे क्या बीत रही है देख सकती थी लेकिन ससुर जी उसका चेहरा ठीक से नहीं देख पाते थे।

एक दिन की बात है। कन्चन नहाने जा रही थी, लेकिन बाथरूम का बल्ब खराब हो गया था। कन्चन सिर्फ़ ब्लाउज और पेटिकोट में ही थी। कन्चन ने एक कुर्सी पे चढ़ कर बल्ब बदलने की कोशिश की लेकिन कुर्सी की टांगें हिल रही थी और कन्चन को गिरने का डर था। उसने सास को आवाज़ दी। दो तीन बार पुकारा लेकिन सासु मां शायद पूजा कर रही थी। उसे कन्चन की आवाज़ सुनाई नहीं दी। रामलाल आंगन में अखबार पढ़ रहा था। बहु की आवाज़ सुन कर वो बाथरूम में गया। वहां का नज़ारा देख के तो उसका कलेजा धक रह गया। बहु सिर्फ़ पेटीकोट और ब्लाउज में कुर्सी पे खड़ी हुई थी और उसके हाथ में बल्ब था। पेटिकोट नाभी से करीब आठ इन्च नीचे बन्धा हुआ था। बहु की गोरी कमर और मांसल पेट पूरा नज़र आ रहा था। कन्चन ससुर जी को सामने देख कर हड़बड़ा गयी और एक हाथ से अपनी छतियों को ढकने की नाकामयाब कोशिश करने लगी।

हकलाती हुई बोली, "पिताजी। आप....!"

"हां बेटी तुम सासु मां को आवाज़ें दे रही थी। वो तो पूजा कर रही है इसलिये मैं ही आ गया। बोलो क्या काम है?" रामलाल कन्चन की जवानी को ललचायी नज़रों से देखता हुआ बोला।

"जी बल्ब खराब हो गया है। लगाने की कोशिश कर रही थी, लेकिन कुर्सी हिल रही है। सासु मां को बुला रही थी की अगर वो मुझे पकड़ लें तो मैं बल्ब बदल सकूं।" कन्चन का एक हाथ अब भी अपनी छातिओं को छुपाने की कोशिश कर रहा था।

"कोई बात नहीं बहु मैं तुम्हें पकड़ लेता हूं।"

"जी आप?"

"घबराओ नहीं गिराऊंगा नहीं।" ये कहते हुए रामलाल ने कुर्सी के ऊपर खड़ी कन्चन की जांघों को पीछे से अपनी बाहों में जकड़ लिया। कन्चन के भारी नितम्ब रामलाल के मुंह से सिर्फ़ दो इन्च ही दूर थे। रामलाल को पेटिकोट में से कन्चन की गुलाबी रंग की पैंटी की झलक मिल रही थी। उफ! ८० % चूतड़ तो पैंटी के बाहर थे। कन्चन के विशाल चूतड़ रामलाल के मुंह के इतने नज़दीक थे कि उसका दिल कर रहा था, कि उन विशाल चूतड़ों के बीच में मुंह डाल दे।

कन्चन बुरी तरह से शर्मा गयी लेकिन क्या करती? जल्दी से बल्ब लगाने की कोशिश करने लगी। बल्ब लगाने के लिये उसे हाथ छाती पर से हटाना पड़ा। रामलाल के दिल पे तो जैसे छुरी चल गयी। बहु की बड़ी बड़ी चूचिआं ब्लाउज से बाहर गिरने को हो रही थी। पेटिकोट इतना नीचे बंधा हुआ था की बहु के नितम्ब वहीं से शुरु हो जाते थे। कुर्सी अब भी हिल रहा थी। रामलाल ने इस सुनहरे मौके का पूरा फायदा उठाया। उसने अपने पैर से कुर्सी को और हिला दिया।

बहु गिरने को हुई तो रामलाल ने उसकी जांघों को अपनी ओर खींच कर और अच्छी तरह जकड़ लिया। जांघों को अपनी ओर खींचने से कन्चन के चूतड़ पीछे की ओर हो गये और रामलाल का मुंह बहु के विशाल चूतड़ों के बीच की दरार में घुस गया। ऊफ क्या मादक खुश्बू थी बहु के बदन की। करीब १० सेकंड तक रामलाल ने अपना मुंह बहु के चूतड़ों की दरार में दबा के रखा। पेटिकोट पैंटी समैत बहु के चूतड़ों के बीच फंस गया। कन्चन ने किसी तरह जल्दी से बल्ब लगाया।

"पिताजी बल्ब लग गया।"

"ठीक है बहु।" ये कहते हुए रामलाल ने एकदम से उसकी टांगें छोड़ दी। जैसे ही रामलाल ने कन्चन की टांगें छोड़ी कन्चन का बेलैन्स बिगड़ गया और वो आगे की ओर गिरने लगी। रामलाल ने एकदम पीछे से हाथ डाल कर उसे गिरने से बचा लिया। लेकिन उसका हाथ सीधा कन्चन की बड़ी बड़ी चूचिओं पे पड़ा। अब कन्चन की दोनों चूचिआं रामलाल के हाथों में थी। रामलाल ने उसे चूचिओं से पकड़ के अपनी ओर खींच लिया। अब सीन ये था की रामलाल पीछे से बहु से चिपका हुआ था। बहु के विशाल चूतड़ रामलाल के सख्त होते हुए लंड से सटे हुए थे और बहु की दोनों चूचिआं रामलाल के हाथों में दबी हुई थी। ये सब तीन सेकेन्ड में हो गया।

"अरे बहु मैं ना पकड़ता तो तुम तो गिर जाती। ना जाने कितनी चोट लगती। ऐसे काम तुम्हें खुद नहीं करने चाहिये। हमें कह दिया होता। आगे से ऐसा नहीं करना" रामलाल बहु की चूचिओं पर से हाथ हटाता हुआ बोला।

"जी पिताजी। आगे से ऐसा नहीं करुंगी।"

रामलाल जल्दी से बाहर चला गया क्युंकि अब उसका लंड तन गया था और बहु को नज़र आ जाता। लेकिन कन्चन भी अनाड़ी नहीं थी। उसे अच्छी तरह पता था की ससुर जी ने मौके का पूरा फायदा उठाया था। उसकी जांघों को जिस तरह से उन्होनें पकड़ा था वैसे एक ससुर अपनी बहु की टांगें नहीं पकड़ता। उसके चूतड़ों के बीच में मुंह देना, और फिर उसे गिरने से बचाने के बहाने दोनों चूचिआं दबा देना कोई इत्तेफ़ाक नहीं था। और फिर उसे गिरने से बचाने के बाद उसके चूतड़ों के साथ ऐसे चिपक के खड़े थे कि कन्चन को उनका लंड अपने चूतड़ों पर रगड़ता हुआ महसूस हो रहा था। ससुरजी जल्दी से बाहर तो चले गये लेकिन उनकी धोती का उठाव कन्चन से नहीं छुपा था। वो समझ गयी की ससुर जी का लंड तना हुआ था। कन्चन नहाने के लिये बाथरूम में चली गयी। लेकिन उसके चूतड़ों के बीच ससुरजी के मुंह का स्पर्श और उसकी चूचिओं पे उनके हाथ का स्पर्श उसे अभी तक महसूस हो रहा था। उसकी चूत गीली होने लगी और पहली बार उसने ससुर जी के नाम से अपनी चूत में उंगली डाल कर अपनी वासना की भूख को शान्त करने की कोशिश की।

अब तो कन्चन ने भी ससुर जी को रिझाने का प्लान बनना शुरु कर दिया। एक बार फिर सासु मां को ससुर जी के साथ शहर जाना था। इस बार रामलाल ने पहले ही किसी को गाड़ी के लिये बोल दिया था। उसने इस बार भी माया देवी को किसी के साथ गाड़ी में शहर भेज दिया। माया देवी के जाने के बाद वो कन्चन से बोला कि वो खेतों में जा रहा है और शाम तक आयेगा। रामलाल के जाने के बाद कन्चन ने घर का दरवाज़ा अन्दर से बन्द कर लिया और कपड़े धोने और नहाने की तैयारी करने लगी। उधर रामलाल थोड़ी दूर जा के वापस आ गया। उसका इरादा फिर पहले की तरह अपने कमरे में साईड के दरवाज़े से घुस कर बहु को देखने का था। वो सोच रहा था कि अगर किस्मत ने साथ दिया तो बहु को नंगी देख पायेगा। कन्चन किसी काम से छत पे गयी। अचानक जब उसने नीचे झांका तो उसकी नज़र चुपके से अपने कमरे का ताला खोलते हुए रामलाल पे पड़ गयी। कन्चन समझ गयी कि रामलाल चुपचाप अपने कमरे में क्यों घुस रहा है। अब तो कन्चन ने सोच लिया कि आज वो जी भर के ससुर जी को तड़पाएगी। मर्दों को तड़पाने में तो वो बचपन से माहिर थी। वो नीचे आ कर अपने कमरे में गयी लेकिन कमरे का दरवाज़ा खुला छोड़ दिया। उधर रामलाल अपने कमरे में से बहु के कमरे में झांक रहा था। कन्चन शीशे के सामने खड़ी हो कर अपनी साड़ी उतारने लगी। उसकी पीठ रामलाल की ओर थी। रामलाल सोच रहा था कि बहु कितनी अदा के साथ साड़ी उतार रही है जैसे कोई मर्द सामने बैठा हो और उसे रिझाने के लिये साड़ी उतार रही हो।

उसे क्या पता था कि बहु उसी को रिझाने के लिये इतने नखरों के साथ साड़ी उतार रही थी। धीरे धीरे बहु ने साड़ी उतार दी। अब वो सिर्फ़ पेटिकोट और ब्लाउज में ही थी। कन्चन पेटिकोट और ब्लाउज में ही आंगन में आ गयी। उसे मालूम था की ससुर जी की नज़रें उस पर लगी हुई हैं। सफ़ेद पेटिकोट के महीन कपड़े में से बहु की काली रंग की कच्छी साफ़ नज़र आ रही थी। खास कर जब बहु चलती तो बारी बारी से उसके मटकते हुए चूतड़ों पे पेटिकोट टाईट हो जाता और कच्छी की झलक भी और ज़्यादा साफ़ हो जाती। रामलाल का लौड़ा हरकत करने लगा था। बहु आंगन में बैठ के कपड़े धोने लगी। पानी से उसका ब्लाउज गीला हो गया था और रामलाल को अन्दर से झांकती हुई ब्रा भी नज़र आ रही थी। थोड़ी देर बाद बहु अपने कमरे में गयी और फिर शीशे के सामने खड़े हो के अपनी जवानी को निहारने लगी। अचानक बहु ने अपना ब्लाउज उतार दिया। वो अब भी शीशे के सामने खड़ी थी और उसकी पीठ रामलाल की ओर थी। फिर धीरे से बहु का हाथ पेटिकोट के नाड़े पे गया। रामलाल का तो कलेजा ही मुंह को आ गया। वो मनाने लगा - हे भगवान बहु पेटिकोट भी उतार दे। भगवान ने मानो उसकी सुन ली। बहु ने पेटिकोट का नाड़ा खींच दिया और अगले ही पल पेटिकोट बहु के पैरों में पड़ा हुआ था। अब बहु सिर्फ़ कच्छी और ब्रा में खड़ी अपने आप को शीशे में निहार रही थी। क्या तराशा हुआ बदन था।

भगवान ने बहु को बड़ी फुर्सत से बनया था। बहु की ब्रा बड़ी मुश्किल से उसकी चूचिओं को सम्भाले हुए थी और उसके विशाल चूतड़! छोटी सी काली कच्छी बहु के उन विशाल चूतड़ों को सम्भालने में बिल्कुल भी कामयाब नहीं थी। ८०% चूतड़ कच्छी के बाहर थे। शीशे में अपने को निहारते हुए बहु ने दोनों हाथ सिर के ऊपर उठा दिये और बाहों के नीचे बगलों में उगे हुए बालों का निरीक्षण करने लगी। बाल बहुत ही घने और काले थे। रामलाल सोच रहा था की शायद बहु को बगलों में से बाल साफ़ करने का टाईम नहीं मिला था वर्ना शहर की लड़कियां तो बगलों के बाल साफ़ करती हैं। अगर बगलों में इतने घने बाल थे तो चूत पे कितने घने बाल होंगे। इतने में बहु ने झाड़ू उठा ली और कमरे में झाड़ू लगाने लगी। उसकी पीठ अब भी रामलाल की ओर थी। कन्चन अच्छी तरह जानती थी इस वक्त रामलाल पे क्या बीत रही होगी।

झाड़ू लगाने के बहाने वो आगे को झुकी और अपने विशाल चूतड़ों को बहुत ही मादक तरीके से पीछे की ओर उठा दिया। कन्चन जानती थी की उसके चूतड़ मर्दों पे किस तरह कहर ढाते हैं। रामलाल का कलेजा मुंह में आ गया। उसकी आखें तो मानो बाहर गिरने को हो रही थी। जिस तरह से कन्चन आगे झुकी हुई थी और उसके चूतड़ पीछे की ओर उठे हुए होने के कारण दोनों चूतड़ ऐसे फैल गये थे कि उनके बीच में कम से कम तीन इंच का फासला हो गया था। ऐसा लग रहा था जैसे दोनों चूतड़ बहु की छोटी सी कच्छी को निगलने के लिये तैयार हो। रामलाल को कोई शक नहीं था कि जैसे ही बहु सीधी होगी उसके विशाल चूतड़ उस बेचारी छोटी सी कच्छी को निगल जाएंगे। कन्चन भी जानती थी कि जब वो सीधी होगी तो उसकी पैंटी का क्या हाल होगा। वही हुआ। बहु झाड़ू लगाते लगाते सीधी हुई और उसके विशाल चूतड़ों ने भूखे शेरों की तरह उसकी कच्छी को दबोच लिया। अब कच्छी उसके दोनों चूतड़ों के बीच में फंसी हुई थी। रामलाल का लंड फनफनाने लगा। कन्चन ये झाड़ू लगाने का खेल थोड़ी देर तक खेलती रही। बार बार सीधी हो जाती। धीरे धीरे उसकी पैंटी चूतड़ों पे से सिमट के उनके बीच की दरार में फंस गयी।

कन्चन जानती थी की इस वक्त ससुर जी पे क्या बीत रही होगी। लेकिन अभी तो खेल शुरु ही हुआ था। कन्चन फिर से शीशे के सामने खड़ी हो गयी। शीशे में अपने खूबसूरत बदन को निहारते हुए बड़ी अदा के साथ उसने चूतड़ों के बीच फंसी पैंटी को निकाल के ठीक से स्थापित किया। फिर उसने धुला हुआ पेटिकोट और ब्लाउज निकाला। अब कन्चन शीशे के सामने खड़ी हो गयी और अपनी ब्रा उतार दी। उसकी पीठ रामलाल की ओर थी। ब्रा उतारने के बाद उसने बड़ी अदा के साथ अपनी पैंटी भी उतार दी। अब वो शीशे के सामने बिल्कुल नंगी खड़ी थी। रामलाल के तो पसीने ही छूट गये। बहु को इस तरह नंगी देख कर उसके मुंह में पानी आ रहा था। क्या जानलेवा बदन था बहु का। रामलाल मना रहा था कि बहु घूम जाए तो उसकी चूचिओं और चूत के भी दर्शन हो जाएं। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। अब बहु अचानक आगे की ओर झुकी मानो ज़मीन पे पड़ी हुई किसी चीज़ को उठाने की कोशिश कर रही हो। ऐसा करने से उसके चूतड़ पीछे की ओर उठ गये और बहु की गोरी गोरी जांघों और चूतड़ों के बीच से झांटों के काले काले बाल झांकने लगे। कन्चन फिर से सीधी हुई और रामलाल की ओर पीठ करे हुए ही ब्लाउज पहना और फिर पेटीकोट पहन लिया। रामलाल जानता था कि बहु ने ब्लाउज के नीचे ब्रा और पेटिकोट के नीचे कच्छी नहीं पहनी है। अब कन्चन उतारे हुए कपड़े ले कर आंगन में धोने आ गयी। बिना कच्छी के बहु के चूतड़ चलते वक्त ज़्यादा हिल रहे थे। कपड़े धोते हुए उसका ब्लाउज गीला हो गया। अन्दर से ब्रा ना पहना होने के कारण रामलाल को बहु की बड़ी बड़ी चूचिआं और निप्पल साफ़ नज़र आ रहे थे।

बहु पैर मोड़ के बैठी थी। पेटिकोट उसकी मुड़ी हुई टांगों के बीच में फंसा हुआ था। रामलाल मना रहा था कि किसी तरह पेटिकोट का निचला हिस्सा बहु की टांगों से निकल जाए। रामलाल को बहुत इन्तज़ार नहीं करना पड़ा। कन्चन का भी वही इरादा था। इस कला में तो वो बहुत माहिर थी। एक बार पहले भी अपने देवर के साथ ऐसा ही कुछ कर चुकी थी। कपड़े धोते धोते उसने पेटिकोट का निचला हिस्सा अपनी मुड़ी हुई टांगों से छूट के गिरने दिया। कन्चन उसी प्रकार कपड़े धोने बैठी हुई थी जैसे औरतें पेशाब करने बैठती हैं। कन्चन को मालूम था की अब उसकी नंगी चूत पूरी तरह फैली हुई थी। क्युंकि कमला ने उसकी चूत के छेद के आस पास के बाल काट दिये थे, इसलिये अब तो उसकी फूली हुई चूत की दोनों फांकें, उनके बीच का कटाव और कटाव के बीच में से चूत के बड़े बड़े होंठ साफ़ नज़र आ रहे थे। रामलाल को तो मानो लकवा मार गया। उसे डर था की कहीं उसके दिल की धड़कन रुक ना जाए। लेकिन अगले ही पल कन्चन ने पेटिकोट फिर से ठीक कर लिया। रामलाल को उसकी चूत के दर्शन मुश्किल से तीन सेकेन्ड के लिये ही हुए। गोरी गोरी मांसल जांघों के बीच में घना जंगल और उस जंगल में से झांकती फूली हुई वो चूत ! क्या गज़ब का नज़ारा था। बहु की चूत के होंठ ऐसे खुले हुए थे मानो बरसों से प्यासे हों। ऊफ क्या लम्बी घनी झांटें थी बहु की। कपड़े धोने का नाटक करते हुए कन्चन ने ब्लाउज और पेटिकोट खूब गीला कर लिया था। भीगा हुए ब्लाउज और पेटिकोट कन्चन के बदन से चिपका जा रहा था। कन्चन काफ़ी देर तक ससुरजी को इसी तरह तड़पाती रही।