गाटांक से आगे ......
विकी और सुधीर की बातें सुन कर मेरा पसीना छ्छूट गया. मेरा सगा भाई भी मुझे चोदना चाहता है. मैने अब अपनी पॅंटी बाथरूम में कभी नहीं छोड़ी. मुझे डर था की विकी मेरी पॅंटी सुधीर को ना देदे. मुझे विकी से कोई शिकायत नहीं थी. आख़िर वो मेरा छ्होटा भाई था. अगर विकी मुझे नंगी देखने के लिए इतना उतावला था तो हालाँकि मैं उसके सामने खुले आम नंगी तो नहीं हो सकती थी पर किसी ना किसी बहाने अपने बदन के दर्शन ज़रूर करा सकती थी. स्कूल ड्रेस में अपनी पॅंटी की झलक देना बड़ा आसान था. सोफा पर बैठ कर टीवी देखते वक़्त अपनी टाँगों को इस प्रकार फैला लेती की विकी को मेरी पॅंटी के दर्शन हो जाते. एक दिन मैं स्कूल ड्रेस में ही लेटी बुक पढ़ रही थी की विकी के कदमों की आहट सुनाई दी. मैने झट से टाँगें मोड़ कर ऊपर कर ली ओर बुक पढ़ने का नाटक करती रही. मेरी गोरी गोरी मांसल टाँगें पूरी तरह नंगी थी. स्कर्ट कमर तक ऊपर चढ़ गयी थी. मैने ज़्यादा ही छ्होटी पॅंटी पहन रखी थी जो बरी मुश्किल से मेरी चूत को ढके हुए थी. मेरी लंबी घनी झांटें पॅंटी के दोनो ओर से बाहर निकली हुई थी. इतने में विकी आ गया और सामने का नज़ारा देख कर हरबदा कर खड़ा हो गया. उसकी आँखें मेरी टाँगों के बीच में जमी हुई थी. इस मुद्रा की प्रॅक्टीस मैं शीशे के सामने पहले ही कर चुकी थी. मुझे भली भाँति पता था कि इस वक़्त मेरी चूत के घने बॉल पॅंटी के दोनो ओर से झाँक रहे थे. पॅंटी बड़ी मुश्किल से मेरी फूली हुई चूत के उभार को ढके हुए थी. मैने उसे जी भर के अपनी पॅंटी के दर्शन कराए. इतने में मैने बुक नीचे करते हुए पूछा “ विकी क्या कर रहा है? कुच्छ चाहिए?” विकी एकदम से हार्बारा गया. उसका चेहरा उत्तेजना से लाल था. “ कुच्छ नहीं दीदी. अपनी बुक ढूंड रहा था. उसकी पॅंट के उभार को देख कर मैं समझ गयी उसका लंड खड़ा हो गया है. लेकिन विकी के पॅंट का उभार देख कर ऐसा लगता था कि उसका लंड काफ़ी बड़ा था.
जब से विकी के पॅंट का उभार देखा तब से मेरे दिमाग़ में एक ही बात घूमने लगी कि किस तरह विकी का लंड देखा जाए. मुझे पता था कि विकी रात को लूँगी पहन कर सोता है. मेरे दिमाग़ में एक प्लान आया. मैं रोज़ सुबह जल्दी उठ कर विकी के कमरे में इस आस में जाती कि किसी दिन उसकी लूँगी खुली हुई मिल जाए या कमर तक उठी हुई मिल जाए और मैं उसके लंड के दर्शन कर सकूँ. कई दिन तक किस्मत ने साथ नहीं दिया. अक्सर उसकी लूँगी जांघों तक उठी हुई होती लेकिन लंड फिर भी नज़र नहीं आता. लेकिन मैने भी हार नहीं मानी. आख़िर एक दिन मैं कामयाब हो ही गयी. एक दिन जब मैं विकी के कमरे में घुसी तो देखा विकी पीठ पे लेटा हुआ है और उसकी लूँगी सामने से खुली हुई थी. सामने का नज़ारा देख कर तो मैं बेहोश होते होते बची. मैने तो सपने में भी ऐसे नज़ारे की कल्पना नहीं की थी. इतना लंबा! इतना मोटा! इतना काला लंड! जैसा की मैने बताया विकी पीठ के बल लेटा हुआ था, लेकिन उसके लंड का सुपरा बिस्तेर पे टीका हुआ था! बाप रे बाप! मैने अपने आप को नोचा, कहीं मैं सपना तो नहीं देख रही थी. क्या भयंकर लग रहा था विकी का लंड. इसने तो साधु महाराज के लंड को भी मात दे दी. अब तक तो मैं लंड एक्सपर्ट हो चुकी थी. नीलम और मैने अब तक ना जाने कितने छ्होटे छ्होटे पेशाब करते भद्दे से लंड देखे थे. मैं मन ही मन सोचने लगी कि घर में इतना लंबा मोटा लंड मोज़ूद है और मैं बेकार में ही दूसरों का लंड देखने में अपना समय बर्बाद कर रही थी. मुझे तो जैसे साँप सूंघ गया था. अचानक विकी ने हरकत की, और मैं जल्दी से भाग गयी. उस दिन के बाद से तो मेरी नींद हराम हो गयी. रोज़ सुबह पागलों की तरह उठ के विकी के लंड के दर्शन करने उसके कमरे में जाती लेकिन हमेशा निराशा ही हाथ लगती. मैने सोच लिया था कि एक दिन ये लंड मेरी चूत में ज़रूर जाएगा.
मेरी उम्र 20 साल हो चुकी थी. मम्मी पापा मेरे लिए लड़का ढूंड रहे थे. एक बार हम सब कानपुर से एक लड़के को देख कर वापस आ रहे थे. ट्रेन में बहुत भीड़ थी. सिर्फ़ दो ही सीट मिली. वो भी अलग अलग कॉमपार्टमेंट में. पापा मम्मी एक कॉमपार्टमेंट में चले गये और मैं और विकी दूसरे में. मैने सोचा इससे अच्छा मोका कभी नहीं मिलेगा. रात को तो हम दोनो को एक ही सीट पर सोना पड़ेगा. मैं प्लान बनाने लगी की किस प्रकार इस सुनेहरे मोके का पूरा फ़ायदा उठाया जाए. एसी 2 टीएर में साइड वाली सीट थी. विकी मेरी सामने वाली सीट पर बैठा था. मैने लहंगा पहना हुआ था. आज तक काई बार विकी को पॅंटी के दर्शन करा चुकी थी और एक बार तो उसके मुँह पे भी पॅंटी से धकि अपनी चूत रगड़ चुकी थी. क्यों ना इस बार अपनी नंगी चूत के भी दर्शन करा दूं. विकी को इस प्रकार तड़पाने में मुझे बहुत मज़ा आने लगा था. मुझे मालूम था विकी मुझे चोदने के ख्वाब देखता है. मैने जब से उसका लंड देखा था तभी से ठान लिया था कि शादी के बाद विकी से ज़रूर चुदवाउन्गि. शादी से पहले मैं अपना कुँवारापन नहीं खोना चाहती थी. इसके इलावा किसी भी कुँवारी चूत के लिए विकी का मूसल बहुत ख़तरनाक था. मेरी कुँवारी चूत बुरी तरह से फॅट सकती थी, और अगर नहीं भी फटती तो इतनी चौरी हो जाती की मेरे होने वाले पति को पता लग जाता की मैं कुँवारी नहीं हूँ. पापा के मोटे लॉड ने मम्मी की चूत का क्या हाल कर रखा था वो तो मैं खुद ही देख चुकी थी. मैं पेशाब करने के बहाने बाथरूम गयी और अपनी पॅंटी उतार ली. अब मेरी चूत लहँगे के नीचे बिल्कुल नंगी थी. सामने की सीट पर विकी बैठा हुआ था. मैं अपनी सीट पर उसके सामने आ कर बैठ गयी, टाँगें विकी की सीट पर रख लीं, और अपनी सीट का परदा खींच लिया ताकि बाकी लोग मेरी हरकतें ना देख सकें. अगर मैं लहंगा थोड़ा भी ऊपर करती तो वो मेरी टाँगों के बीच झाँक सकता था. मैं नॉवेल पढ़ने का बहाना करने लगी. विकी पूरी कोशिश कर रहा था कि किसी तरह मेरी टाँगों के बीच की झलक मिल जाय. वो तो बेचारा मेरी पॅंटी की झलक पाने की आशा कर रहा था. उसे क्या मालूम कि आज तो उसे शॉक लगने वाला था. मैं भी उसे खूब उतावला करती रही. थोड़ा सा लहंगा ऊपर खींच लेती, लेकिन सिर्फ़ इतना ही की विकी को कुच्छ दिखने की आशा हो जाए पर दिखाई कुच्छ ना दे. फिर थोरी देर में टाँग खुजलाने के बहाने लहंगा थोड़ा और ऊपर कर लेती जिससे विकी को मेरी गोरी गोरी टाँगें नज़र आ जाती पर असली चीज़ नहीं. मेरा इरादा था कि रात को सोने से पहले ही उसे अपनी चूत के दर्शन कारवँगी, क्योंकि सोना तो हमने एक ही सीट पर था.
विकी और सुधीर की बातें सुन कर मेरा पसीना छ्छूट गया. मेरा सगा भाई भी मुझे चोदना चाहता है. मैने अब अपनी पॅंटी बाथरूम में कभी नहीं छोड़ी. मुझे डर था की विकी मेरी पॅंटी सुधीर को ना देदे. मुझे विकी से कोई शिकायत नहीं थी. आख़िर वो मेरा छ्होटा भाई था. अगर विकी मुझे नंगी देखने के लिए इतना उतावला था तो हालाँकि मैं उसके सामने खुले आम नंगी तो नहीं हो सकती थी पर किसी ना किसी बहाने अपने बदन के दर्शन ज़रूर करा सकती थी. स्कूल ड्रेस में अपनी पॅंटी की झलक देना बड़ा आसान था. सोफा पर बैठ कर टीवी देखते वक़्त अपनी टाँगों को इस प्रकार फैला लेती की विकी को मेरी पॅंटी के दर्शन हो जाते. एक दिन मैं स्कूल ड्रेस में ही लेटी बुक पढ़ रही थी की विकी के कदमों की आहट सुनाई दी. मैने झट से टाँगें मोड़ कर ऊपर कर ली ओर बुक पढ़ने का नाटक करती रही. मेरी गोरी गोरी मांसल टाँगें पूरी तरह नंगी थी. स्कर्ट कमर तक ऊपर चढ़ गयी थी. मैने ज़्यादा ही छ्होटी पॅंटी पहन रखी थी जो बरी मुश्किल से मेरी चूत को ढके हुए थी. मेरी लंबी घनी झांटें पॅंटी के दोनो ओर से बाहर निकली हुई थी. इतने में विकी आ गया और सामने का नज़ारा देख कर हरबदा कर खड़ा हो गया. उसकी आँखें मेरी टाँगों के बीच में जमी हुई थी. इस मुद्रा की प्रॅक्टीस मैं शीशे के सामने पहले ही कर चुकी थी. मुझे भली भाँति पता था कि इस वक़्त मेरी चूत के घने बॉल पॅंटी के दोनो ओर से झाँक रहे थे. पॅंटी बड़ी मुश्किल से मेरी फूली हुई चूत के उभार को ढके हुए थी. मैने उसे जी भर के अपनी पॅंटी के दर्शन कराए. इतने में मैने बुक नीचे करते हुए पूछा “ विकी क्या कर रहा है? कुच्छ चाहिए?” विकी एकदम से हार्बारा गया. उसका चेहरा उत्तेजना से लाल था. “ कुच्छ नहीं दीदी. अपनी बुक ढूंड रहा था. उसकी पॅंट के उभार को देख कर मैं समझ गयी उसका लंड खड़ा हो गया है. लेकिन विकी के पॅंट का उभार देख कर ऐसा लगता था कि उसका लंड काफ़ी बड़ा था.
जब से विकी के पॅंट का उभार देखा तब से मेरे दिमाग़ में एक ही बात घूमने लगी कि किस तरह विकी का लंड देखा जाए. मुझे पता था कि विकी रात को लूँगी पहन कर सोता है. मेरे दिमाग़ में एक प्लान आया. मैं रोज़ सुबह जल्दी उठ कर विकी के कमरे में इस आस में जाती कि किसी दिन उसकी लूँगी खुली हुई मिल जाए या कमर तक उठी हुई मिल जाए और मैं उसके लंड के दर्शन कर सकूँ. कई दिन तक किस्मत ने साथ नहीं दिया. अक्सर उसकी लूँगी जांघों तक उठी हुई होती लेकिन लंड फिर भी नज़र नहीं आता. लेकिन मैने भी हार नहीं मानी. आख़िर एक दिन मैं कामयाब हो ही गयी. एक दिन जब मैं विकी के कमरे में घुसी तो देखा विकी पीठ पे लेटा हुआ है और उसकी लूँगी सामने से खुली हुई थी. सामने का नज़ारा देख कर तो मैं बेहोश होते होते बची. मैने तो सपने में भी ऐसे नज़ारे की कल्पना नहीं की थी. इतना लंबा! इतना मोटा! इतना काला लंड! जैसा की मैने बताया विकी पीठ के बल लेटा हुआ था, लेकिन उसके लंड का सुपरा बिस्तेर पे टीका हुआ था! बाप रे बाप! मैने अपने आप को नोचा, कहीं मैं सपना तो नहीं देख रही थी. क्या भयंकर लग रहा था विकी का लंड. इसने तो साधु महाराज के लंड को भी मात दे दी. अब तक तो मैं लंड एक्सपर्ट हो चुकी थी. नीलम और मैने अब तक ना जाने कितने छ्होटे छ्होटे पेशाब करते भद्दे से लंड देखे थे. मैं मन ही मन सोचने लगी कि घर में इतना लंबा मोटा लंड मोज़ूद है और मैं बेकार में ही दूसरों का लंड देखने में अपना समय बर्बाद कर रही थी. मुझे तो जैसे साँप सूंघ गया था. अचानक विकी ने हरकत की, और मैं जल्दी से भाग गयी. उस दिन के बाद से तो मेरी नींद हराम हो गयी. रोज़ सुबह पागलों की तरह उठ के विकी के लंड के दर्शन करने उसके कमरे में जाती लेकिन हमेशा निराशा ही हाथ लगती. मैने सोच लिया था कि एक दिन ये लंड मेरी चूत में ज़रूर जाएगा.
मेरी उम्र 20 साल हो चुकी थी. मम्मी पापा मेरे लिए लड़का ढूंड रहे थे. एक बार हम सब कानपुर से एक लड़के को देख कर वापस आ रहे थे. ट्रेन में बहुत भीड़ थी. सिर्फ़ दो ही सीट मिली. वो भी अलग अलग कॉमपार्टमेंट में. पापा मम्मी एक कॉमपार्टमेंट में चले गये और मैं और विकी दूसरे में. मैने सोचा इससे अच्छा मोका कभी नहीं मिलेगा. रात को तो हम दोनो को एक ही सीट पर सोना पड़ेगा. मैं प्लान बनाने लगी की किस प्रकार इस सुनेहरे मोके का पूरा फ़ायदा उठाया जाए. एसी 2 टीएर में साइड वाली सीट थी. विकी मेरी सामने वाली सीट पर बैठा था. मैने लहंगा पहना हुआ था. आज तक काई बार विकी को पॅंटी के दर्शन करा चुकी थी और एक बार तो उसके मुँह पे भी पॅंटी से धकि अपनी चूत रगड़ चुकी थी. क्यों ना इस बार अपनी नंगी चूत के भी दर्शन करा दूं. विकी को इस प्रकार तड़पाने में मुझे बहुत मज़ा आने लगा था. मुझे मालूम था विकी मुझे चोदने के ख्वाब देखता है. मैने जब से उसका लंड देखा था तभी से ठान लिया था कि शादी के बाद विकी से ज़रूर चुदवाउन्गि. शादी से पहले मैं अपना कुँवारापन नहीं खोना चाहती थी. इसके इलावा किसी भी कुँवारी चूत के लिए विकी का मूसल बहुत ख़तरनाक था. मेरी कुँवारी चूत बुरी तरह से फॅट सकती थी, और अगर नहीं भी फटती तो इतनी चौरी हो जाती की मेरे होने वाले पति को पता लग जाता की मैं कुँवारी नहीं हूँ. पापा के मोटे लॉड ने मम्मी की चूत का क्या हाल कर रखा था वो तो मैं खुद ही देख चुकी थी. मैं पेशाब करने के बहाने बाथरूम गयी और अपनी पॅंटी उतार ली. अब मेरी चूत लहँगे के नीचे बिल्कुल नंगी थी. सामने की सीट पर विकी बैठा हुआ था. मैं अपनी सीट पर उसके सामने आ कर बैठ गयी, टाँगें विकी की सीट पर रख लीं, और अपनी सीट का परदा खींच लिया ताकि बाकी लोग मेरी हरकतें ना देख सकें. अगर मैं लहंगा थोड़ा भी ऊपर करती तो वो मेरी टाँगों के बीच झाँक सकता था. मैं नॉवेल पढ़ने का बहाना करने लगी. विकी पूरी कोशिश कर रहा था कि किसी तरह मेरी टाँगों के बीच की झलक मिल जाय. वो तो बेचारा मेरी पॅंटी की झलक पाने की आशा कर रहा था. उसे क्या मालूम कि आज तो उसे शॉक लगने वाला था. मैं भी उसे खूब उतावला करती रही. थोड़ा सा लहंगा ऊपर खींच लेती, लेकिन सिर्फ़ इतना ही की विकी को कुच्छ दिखने की आशा हो जाए पर दिखाई कुच्छ ना दे. फिर थोरी देर में टाँग खुजलाने के बहाने लहंगा थोड़ा और ऊपर कर लेती जिससे विकी को मेरी गोरी गोरी टाँगें नज़र आ जाती पर असली चीज़ नहीं. मेरा इरादा था कि रात को सोने से पहले ही उसे अपनी चूत के दर्शन कारवँगी, क्योंकि सोना तो हमने एक ही सीट पर था.
विकी का उतावलापन साफ नज़र आ रहा था. मुझ से ना रहा गया. बेचारे पे बहुत तरस आ रहा था. मैने विकी की सीट से टाँगें उठा कर अपनी सीट पर कर लीं. टाँगें इस प्रकार से चौड़ी करते हुए उठाई की गोरी जांघों के बीच में विकी को मेरी झांतों से भरी हुई चूत के एक सेकेंड के लिए दर्शन हो गये. पॅंट का उभार बता रहा था मेरी चूत का असर. अब तो विकी की हालत और भी खराब थी. बेचारा मेरी आँख बचा कर अपने लंड को पॅंट के ऊपर से ही रगड़ रहा था. कुच्छ देर के बाद मैं टाँगें मोड़ के उकड़ू हो कर बैठ गयी और अपना सिर घुटनों पर टीका के सोने का बहाना करने लगी. लहँगे के नीचे के हिस्से को मैने अपनी मूडी हुई टाँगों में फसाया हुआ था और सामने के हिस्से को घुटनों तक ऊपर खींच रखा था. अब अगर ल़हेंगे का नीचे का या पिच्छला हिस्सा मेरी मूडी हुई टाँगों से निकल कर नीचे गिर जाता तो ल़हेंगे के अंडर से मूडी हुई टाँगों के बीच से मेरी नंगी चूत विकी को बड़ी आसानी से नज़र आ जाती. एक सेकेंड की झलक पा कर ही विकी बहाल था. काफ़ी देर इंतज़ार कराने के बाद मैने अपने घुटनों पे सिर रख कर सोने का बहाना करते हुए टाँगों के बीच फँसा हुआ लहँगे का निचला हिस्सा नीचे गिरने दिया. अब तो मेरी नंगी चूत विकी की आँखों के सामने थी. विकी ज़िंदगी में पहली बार किसी लड़की की चूत देख रहा था. गोरी गोरी मांसल जांघों के बीच में लंबी काली झांतों के अंडर से झँकती हुई मेरी डबल रोटी के समान फूली चूत को देख कर अच्छों अच्छों का ईमान डोल सकता था. विकी तो फिर बच्चा ही था. इस मुद्रा में मेरी चूत के उभरे हुए होंठ घनी झांतों के बीच से झाँक रहे थे. उभरे हुए तो बहुत थे लेकिन उतने चौड़े और खुले हुए नहीं जितने मम्मी की चूत के थे. मम्मी की चूत को पापा का मोटा लॉडा बीस साल से जो चोद रहा था. करीब 5 मिनिट तक मैने जी भर के विकी को अपनी चूत के दर्शन कराए.विकी की तो जैसे आँखे बाहर गिरने वाली थी. अचानक मैने सिर घुटनों से ऊपर उठाया और पूछा,
“ विकी कौन सा स्टेशन आने वाला है.?”
विकी एकदम हरबदा गया और बोला,
“ पता नहीं दीदी. मैं तो सो रहा था.”
“ अरे तुझे इतना पसीना क्यों आ रहा है ? तू ठीक तो है?” मैने विकी के माथे पर हाथ रखते हुए पूछा. पसीना आने का कारण तो मुझे अच्छी तरह मालूम था. ऐसा ही पसीना मुझे भी उस दिन आया था जिस दिन मैने विकी का मोटा लॉडा देखा था. विकी के पॅंट का उभार भी च्छूप नहीं रहा था.
“ अच्छा चल खाना खा लेते हैं.” हम दोनो ने खाना खाया और फिर सोने की तैयारी करने लगे.
“ विकी जा कपड़े बदल ले. सीट तो एक ही है मेरे साथ ही लेट जाना.”
“ दीदी आपके साथ कैसे लेटुँगा?”
“ क्यों मैं इतनी मोटी हूँ जो तू मेरे साथ नहीं लेट सकता.?”
“ नहीं नहीं दीदी एक बार आपको मोटी कह कर भुगत चुक्का हूँ फिर कह दिया तो ना जाने क्या हो जाएगा. अब आप जवान हो गयी हो. आपके साथ सोने में शरम आती है.”
“ ओ ! तो तुझे मेरे साथ सोने में शर्म आ रही है. ठीक है सारी रात खड़ा रह मैं तो चली सोने.” ये कह कर मैं सीट पर लेट गयी. बेचारा काफ़ी देर तक बैठा रहा फिर उठ के बाथरूम गया. जब वापस आया तो उसने लूँगी पहनी हुई थी. मैं मन ही मन मनाने लगी कि काश विकी ने अंडरवेर भी उतारा हुआ हो. विकी फिर आ कर बैठ गया. थोरी देर बाद मैने कहा,
“ जब तेरा शरमाना ख़त्म हो जाए तो लेट जाना. लाइट बंद कर्दे और मुझे सोने दे.”
विकी ने लाइट बंद करदी. मैं विकी की तरफ पीठ करके लेटी थी. उसके लेटने की जगह छोड़ रखी थी. ट्रेन में हल्की हल्की लाइट थी. सोने का बहाना करते हुए मैने लहंगा घुटनों से ऊपर खींच लिया था. ट्रेन की हल्की हल्की लाइट में मेरी गोरी गोरी जंघें चमक रही थी. करीब एक घंटे तक विकी ऐसे ही बैठा रहा. शायद मेरी टाँगों को घूर रहा था. थोरी देर में मुझे धीरे से हिला के फुसफुसाया,
“ दीदी ! दीदी!. सो गयी क्या?
मैं गहरी नींद में सोने का बहाना करती रही.
“ दीदी ! दीदी !” इस बार थोड़ा और ज़ोर से हिलाता हुआ बोला. लेकिन मैने कोई जबाब नहीं दिया. अब उसे विश्वास हो गया था कि मैं गहरी नींद में हूँ. अचानक मुझे महसूस हुआ जैसे कोई मेरा लहंगा ऊपर की ओर सरका रहा हो. मेरा दिल ज़ोर ज़ोर से धक धक करने लगा. मैं विकी का इरादा अच्छी तरह समझ रही थी. बहुत ही धीरे से विकी ने मेरा लहंगा इतना ऊपर सरका दिया की मेरी पूरी टाँगें नंगी हो गयी; सिर्फ़ नितंब ही ढके हुए थे. बाप रे ! थोरी ही देर में ये तो लहंगा मेरे नितंबों के ऊपर सरका देगा. मैने विकी से इस बात की आशा नहीं की थी. मैने तो पॅंटी भी नहीं पहनी थी. विकी भी इस बात को जानता था.
“ दीदी ! दीदी!” विकी एक बार फिर फुसफुसाया. मैं सोने का बहाना किए पड़ी रही. समझ नहीं आ रहा था क्या करूँ. इतने में विकी ने लहंगा बहुत ही धीरे से मेरे नितंबों के ऊपर सरका दिया. हे भगवान ! अब तो मेरे विशाल नितंब बिल्कुल नंगे थे. शरम के मारे मेरा बुरा हाल था, लेकिन क्या करती. जिन नितंबों ने पूरे शहर के लड़कों पर कयामत ढा रखी थी वो आज विकी की नज़रों के सामने बिल्कुल नंगे थे. काफ़ी देर तक मेरे नितंबों को निहारने के बाद विकी धीरे से मेरे पीछे लेट गया. थोरी देर दूर ही लेटा रहा फिर आहिस्ता से सरक के मेरे साथ चिपक गया. मेरे बदन में तो मानो बिजली का करेंट लग गया हो. विकी का तना हुआ लॉडा मेरे चूतरो से चिपक गया. मुझे उसके लौदे की गर्मी महसूस होने लगी. ट्रेन के हिचकॉलों के साथ विकी का लॉडा मेरे चूतरो से रगड़ रहा था. लेकिन उसकी लूँगी मेरे नंगे चूतरो और लॉड के बीच में थी. मेरी चूत तो बुरी तरह से गीली हो चुकी थी. अचानक मुझे महसूस हुआ जैसे की विकी के लॉड की गर्मी बढ़ गयी हो. हाई राम ! विकी ने लॉडा लूँगी से बाहर निकाल लिया था ! अब उसने अपने आप को मेरे पीछे इस प्रकार अड्जस्ट किया की उसका लॉडा मेरे चूतरो की दरार में रगड़ने लगा. वो बिना हीले दुले लेटा हुआ था. ट्रेन के हिचकॉलों के कारण लॉडा मेरे चूतरो की दरार में आगे पीछे हो रहा था. कभी हल्के से मेरी गांद के छेद से रगड़ जाता तो कभी मेरी चूत के छेद तक पहुँच जाता. मुझे बहुत ही मज़ा आ रहा था. मैं सोचने लगी की अगर लॉडा गांद के छेद से रगड़ खा कर भी इतना मज़ा दे सकता है तो गांद में घुस कर तो बहुत ही मज़ा देगा. लेकिन विकी के लॉड के साइज़ को याद करके मैं सिहर उठी. जो लॉडा चूत को फाड़ सकता है वो गांद का क्या हाल करेगा? अब तो मेरी चूत का रस निकल कर मेरी झांतों को गीला कर रहा था. इतने में ट्रेन ने ज़ोर से ब्रेक लगाया और विकी का लॉडा मेरी चूत के छेद से जा टकराया. ऊवई मा कितना अच्छा लग रहा था! मन कर रहा था की चूतरो को थोड़ा पीछे की ओर उचका कर लंड को चूत में घुसा लूँ. अचानक विकी ने मुझे गहरी नींद में समझ कर थोडा ज़ोर से धक्का लगा दिया और उसका लॉडा मेरी बुरी तरह गीली चूत में घुसते घुसते बचा. मैं घबरा गयी. अभी मैं विकी के लंड के लिए तैयार नहीं थी. अंडर घुस गया तो अनर्थ हो जाएगा. मैने नींद टूट जाने का बहाना करते हुए एक अंगड़ाई ली . विकी ने झट से अपना लॉडा हटा लिया और लहंगा मेरे चूतरो पर डाल दिया. मैं उठाते हुए बोली,“ विकी हट बाथरूम जाने दे.”
“ दीदी, बहुत गहरी नींद में थी. ठीक से सोई कि नहीं. मैं बैठ जाता हूँ. दोनो एक सीट पे सो नहीं पाएँगे.”
“ मैं तो बहुत गहरी नींद में थी. थक गयी थी ना. तू तो लगता है सोया ही नहीं.” ये कह के मैं बाथरूम चली गयी. इतनी देर तक उत्तेजना के कारण प्रेशर बहुत ज़्यादा हो गया था. पेशाब करके राहत मिली. छूटरो पर और चूतरो के बीच में हाथ लगाया तो कुच्छ चिपचिपा सा लगा. शायद विकी का वीर्य था. वापस सीट पर आई तो विकी बोला “ दीदी आप सो जाओ मैं किसी दूसरी सीट पे चला जाता हूँ.”
“ नहीं मैं तो सो चुकी हूँ तू लेट जा. मुझे लेटना होगा तो मैं तेरे पीछे लेट जाउन्गि.”
“ ठीक है दीदी. मैं तो लेट रहा हूँ.” विकी लेट गया. पीठ मेरी ओर थी. मैं काफ़ी देर तक बैठी रही और फिर विकी के पीछे सत के लेट गयी. पता नहीं कब आँख लग गयी. जब आँख खुली तो सवेरा हो चुका था.
क्रमशः.........
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