कन्चन की शादी को दो साल हो चुके थे। बचपन से ही कन्चन बहुत खूबसूरत थी। 19 साल की उम्र में ही जिस्म खिलने लग गया था। सोलहवां साल लगते लगते तो कन्चन की जवानी पूरी तरह निखर आयी थी। ऐसा लगता ही नहीं था की अभी १०वीं क्लास में पढती है। स्कूल की स्किर्ट में उसकी भरी भरी जांघें लड़कों पे कहर ढाने लगी थी। स्कूल के लड़कें स्किर्ट के नीचे से झांक कर कन्चन की पैंटी की एक झलक पाने के लिये पागल रहते थे। कभी कभार जब बास्केटबाल खेलते हुए या कभी हवा के झोंके से कन्चन की स्किर्ट उठ जाती तो किस्मत वालों को उसकी पैंटी के दर्शन हो जाते। लड़कें तो लड़कें, स्कूल के टीचर भी कन्चन की जवानी के असर से नहीं बचे थे। कन्चन के भारी नितम्ब, पतली कमर और उभरती चूचिआं देखके उनके सीने पे छुरिआं चल जाती। कन्चन को भी अपनी जवानी पे नाज़ था। वो भी लोगों का दिल जलाने में कोई कसर नहीं छोडती थी।
उन्नीस साल की होते ही कन्चन की शादी हो गयी। कन्चन ने शादी तक अपने कुन्वारे बदन को सम्भाल के रखा था। उसने सोच रखा था की उसका कुन्वारा बदन ही उसके पति के लिये सुहाग रात को एक अनमोल तोहफ़ा होगा। सुहाग रात को पति का मोटा लम्बा लंड देख कर कन्चन के होश उड़ गये थे। उस मोटे लंड ने कन्चन की कुन्वारी चूत लहुलुहान कर दी थी। शादी के बाद कुछ दिन तो कन्चन का पति उसे रोज़ चार पांच बार चोदता था। कन्चन भी एक लम्बा मोटा लौड़ा पा कर बहुत खुश थी। लेकिन धीरे धीरे चुदाई कम होने लगी और शादी के एक साल बाद तो ये नौबत आ गयी थी की महीने में मुश्किल से एक दो बार ही कन्चन की चुदाई होती। हालांकि कन्चन ने सुहाग रात को अपने पति को अपनी कुन्वारी चूत का तोहफ़ा दिया था, लेकिन वो बचपन से ही बहुत कामुक लड़की थी। बस किसी तरह अपनी वासना को कन्ट्रोल करके, अपने स्कूल और कौलेज के लड़कों और टीचर्स से शादी तक अपनी चूत को बचा के रखने में सफ़ल हो गयी थी। महीने में एक दो बार की चुदाई से कन्चन की वासना की प्यास कैसे बुझती ? उसे तो एक दिन में कम से कम तीन चार बार चुदाई की ज़रूरत थी।
उन्नीस साल की होते ही कन्चन की शादी हो गयी। कन्चन ने शादी तक अपने कुन्वारे बदन को सम्भाल के रखा था। उसने सोच रखा था की उसका कुन्वारा बदन ही उसके पति के लिये सुहाग रात को एक अनमोल तोहफ़ा होगा। सुहाग रात को पति का मोटा लम्बा लंड देख कर कन्चन के होश उड़ गये थे। उस मोटे लंड ने कन्चन की कुन्वारी चूत लहुलुहान कर दी थी। शादी के बाद कुछ दिन तो कन्चन का पति उसे रोज़ चार पांच बार चोदता था। कन्चन भी एक लम्बा मोटा लौड़ा पा कर बहुत खुश थी। लेकिन धीरे धीरे चुदाई कम होने लगी और शादी के एक साल बाद तो ये नौबत आ गयी थी की महीने में मुश्किल से एक दो बार ही कन्चन की चुदाई होती। हालांकि कन्चन ने सुहाग रात को अपने पति को अपनी कुन्वारी चूत का तोहफ़ा दिया था, लेकिन वो बचपन से ही बहुत कामुक लड़की थी। बस किसी तरह अपनी वासना को कन्ट्रोल करके, अपने स्कूल और कौलेज के लड़कों और टीचर्स से शादी तक अपनी चूत को बचा के रखने में सफ़ल हो गयी थी। महीने में एक दो बार की चुदाई से कन्चन की वासना की प्यास कैसे बुझती ? उसे तो एक दिन में कम से कम तीन चार बार चुदाई की ज़रूरत थी।
आखिकार जब कन्चन का पति जब तीन महीने के लिये टूर पे गया तो कन्चन के देवर ने उसके अकेलेपन का फ़ायदा उठा कर उसकी वासना को शान्त किया। अब तो कन्चन का देवर रामु कन्चन को रोज़ चोद कर उसकी प्यास बुझाता था। एक दिन गावं से टेलीग्राम आया कि सास की तबियत कुछ खराब हो गयी है। कन्चन के ससुर एक बड़े ज़मीन्दार थे। गावं में उनकी काफ़ी खेती थी। कन्चन का पति राजेश काम के कारण नहीं जा सकता था और देवर रामु का कौलेज था। कन्चन को ही गावं जाना पड़ा। वैसे भी वहां कन्चन की ही ज़रूरत थी, जो सास और ससुर दोनों का ख्याल कर सके और सास की जगह घर को सम्भाल सके। कन्चन शादी के फौरन बाद अपने ससुराल गयी थी। सास ससुर की खूब सेवा करके कन्चन ने उन्हें खुश कर दिया था। कन्चन की खूबसूरती और भोलेपन से दोनों ही बहुत प्रभावित थे। कन्चन की सास माया देवी तो उसकी प्रशन्सा करते नहीं थकती थी। दोनों इतनी सुन्दर, सुशील और मेहनती बहु से बहुत खुश थे। बात बात पे शर्मा जाने की अदा पे तो ससुर रामलाल फ़िदा थे। उन्होनें खास कर कन्चन को कम से कम दो महीने के लिये भेजने को कहा था। दो महीने सुन कर कन्चन का कलेजा धक रह गया था। दो महीने बिना चुदाई के रहना बहुत मुश्किल था। यहां तो पति की कमी उसका देवर रामू पूरी कर देता था। गावं में दो महीने तक क्या होगा, ये सोच सोच कर कन्चन परेशान थी लेकिन कोई चारा भी तो नहीं था। जाना तो था ही। राजेश ने कन्चन को कानपुर में ट्रेन में बैठा दिया। अगले दिन सुबह ट्रेन गोपालपुर गावं पहुंच गयी जो की कन्चन की ससुराल थी।
कन्चन ने चूड़ीदार पहन रखा था। कुर्ता कन्चन के घुटनों से करीब ८ इन्च ऊपर था और कुर्ते के दोनों साईड का कटाव कमर तक था। चूड़ीदार कन्चन के नितम्बों तक टाईट था। चलते वक्त जब कुर्ते का पल्ला आगे पीछे होता या हवा के झोंके से उठ जाता तो टाईट चूड़ीदार में कसी कन्चन की टांगें, मदहोश कर देने वाली मांसल जांघें और विशाल नितम्ब बहुत ही सेक्सी लगते। ट्रेन में सब मर्दों की नज़रें कन्चन की टांगों पर लगी हुई थी। स्टेशन पर कन्चन को लेने सास और ससुर दोनों आए हुए थे। कन्चन अपने ससुर से पर्दा करती थी इसलिये उसने चुन्नी का घुंघट अपने सिर पे ले लिया। अभी तक जो चुन्नी कन्चन की छतियों के उभार को छुपा रही थी, अब उसके घुंघट का काम करने लगी। कन्चन की बड़ी बड़ी छातिआं स्टेशन पे सबका ध्यान खींच रही थी। कन्चन ने झुक के सास के पावं छूये। जैसे ही कन्चन पावं छूने के लिये झुकी रामलाल को उसकी चूड़ीदार में कसी मांसल जांघें और नितम्ब नज़र आने लगे। रामलाल का दिल एक बार तो धड़क उठा। शादी के बाद से बहु कि खूबसूरती को चार चान्द लग गये थे। बदन भर गया था और जवानी पूरी तरह निखर आई थी। रामलाल को साफ़ दिख रहा था कि बहु का टाईट चूड़ीदार और कुर्ता बड़ी मुश्किल से उसकी जवानी को समेटे हुए थे। सास से आशिर्वाद लेने के बाद कन्चन ने ससुरजी के भी पैर छूए। रामलाल ने बहु को प्यार से गले लगा लिया। बहु के जवान बदन का स्पर्श पाते ही रामलाल कांप गया। कन्चन की सास माया देवी बहु के आने से बहुत खुश थी। स्टेशन के बाहर निकल कर उन्होनें तान्गा किया। पहले माया देवी तान्गे पे चढ़ी। उसके बाद रामलाल ने बहु को चढ़ने दिया। रामलाल को मालूम था की जब बहु तांगे पे चढ़ने के लिये टांग ऊपर करेगी तो उसे कुर्ते के कटाव में से बहु की पूरी टांग और नितम्ब भी देखने को मिल जाएंगे। वही हुआ। जैसे ही कन्चन ने तांगे पे बैठने के लिये टांग ऊपर की रामलाल को चूड़ीदार में कसी बहु की सेक्सी टांगों और भारी चूतड़ों की झलक मिल गयी। यहां तक की रामलाल को चूड़ीदार के सफ़ेद महीन कपड़े में से बहु की कच्छी (पेन्टी) की भी झलक मिल गयी। बहु ने गुलाबी रंग की कच्छी पहन रखी थी। अब तो रामलाल का लंड भी हरकत करने लगा। उसने बड़ी मुश्किल से अपने को सम्भाला। रामलाल को अपनी बहु के बारे में ऐसा सोचते हुए अपने ऊपर शर्म आ रही थी। वो सोच रहा था की मैं कैसा इन्सान हूं जो अपनी ही बहु को ऐसी नज़रों से देख रहा हूं। बहु तो बेटी के समान होती है। लेकिन क्या करता? था तो मर्द ही। घर पहुंच कर सास ससुर ने बहु की खूब खातिरदारी की।
गावं में आ कर अब कन्चन को १५ दिन हो चुके थे। सास की तबियत खराब होने के कारण कन्चन ने सारा घर का काम सम्भाल लिया था। उसने सास ससुर की खूब सेवा करके उन्हें खुश कर दिया था। गावं में औरतें लहंगा चोली पहनती थी, इसीलिये कन्चन ने भी कभी कभी लहंगा चोली पहनना शुरु कर दिया। लहंगे चोली ने तो कन्चन की जवानी पे चार चान्द लगा दिये। गोरी पतली कमर और उसके नीचे फैलते हुए भारी नितम्बों ने तो रामलाल का जीना हराम कर रखा था।
कन्चन का ससुर रामलाल एक लम्बा तगड़ा आदमी था। अब उसकी उम्र करीब ५५ साल हो चली थी। जवानी में उसे पहलवानी का शौक था। आज भी उसका जिस्म बिल्कुल गठा हुआ था। रोज़ लंगोट बान्ध के कसरत करता था और पूरे बदन की मालिश करवाता था। सबसे बड़ी चीज जिस पर उसे बहुत नाज़ था, वो थी उसके मसल्स और उसका ११ इन्च लम्बा फौलादी लंड। लेकिन रामलाल की बदकिस्मती ये थी की उसकी पत्नी माया देवी उसकी वासना की भूख कभी शान्त नहीं कर सकी। माया देवी धार्मिक स्वभाव की थी। उसे सैक्स का कोई शौक नहीं था। रामलाल के मोटे लम्बे लौड़े से डरती भी थी क्युं कि हर बार चुदाई में बहुत दर्द होता था। वो मज़ाक में रामलाल को गधा कहती थी। पत्नी की बेरुखी के कारण रामलाल को अपने जिस्म की भूख मिटाने के लिये दूसरी औरतों का सहारा लेना पड़ा। रामलाल के खेतों में कई औरतें काम करती थी। इन मज़दूर औरतों में से सुन्दर और जवान औरतों को पैसे का लालच दे कर अपने खेत के पम्प हाउस में चोदता था। जिन औरतों को रामलाल ने एक बार चोद दिया वो तो मानो उसकी गुलाम बन जाती थी। आखिर ऐसा लम्बा मोटा लंड बहुत किस्मत वाली औरतों को ही नसीब होता है। तीन चार औरतें तो पहली चुदाई में बेहोश भी हो गयी। दो औरतें तो ऐसी थी जिनकी चूत रामलाल के फौलादी लौड़े ने सचमुच ही फाड़ दी थी। अब तक रामलाल कम से कम बीस औरतों को चोद चुका था। लेकिन रामलाल जानता था की पैसा दे कर चोदने में वो मज़ा नहीं जो लड़की को पटा के चोदने में है। आज तक चुदाई का सबसे ज़्यादा मज़ा उसे अपनी साली को चोदने में आया था। माया देवी की बहन सीता, माया देवी से १० साल छोटी थी। रामलाल ने जब उसे पहली बार चोदा उस वक्त उसकी उम्र १७ साल की थी। कोलेज में पढ़ती थी। गर्मिओं की छुट्टी बिताने अपने जीजू के पास आई थी। बिल्कुल कुंवारी चूत थी। रामलाल ने उसे भी खेत के पम्प हाउस में ही चोदा था। रामलाल के मूसल ने सीता की कुंवारी नाज़ुक सी चूत को फाड़ ही दिया था। सीता बहुत चिल्लाई थी और फिर बेहोश हो गयी थी। उसकी चूत से बहुत खून निकला था। रामलाल ने सीता के होश में आने से पहले ही उसकी चूत का सारा खून साफ़ कर दिया था ताकि वो डर ना जाए। रामलाल से चुदाने के बाद सीता सात दिन ठीक से चल भी नहीं पाई और जब ठीक से चलने लायक हुई तो शहर चली गयी। लेकिन ज़्यादा दिन शहर में नहीं रह सकी। रामलाल के फौलादी लौड़े की याद उसे फिर से अपने जीजू के पास खींच लायी। इस बार तो सीता सिर्फ़ जीजू से चुदवाने ही आई थी। रामलाल ने तो समझा था की साली जी नाराज़ हो कर चली गयी। आते ही सीता ने रामलाल को कहा "जीजू मैं सिर्फ़ आपके लिये ही आई हूं। "उसके बाद तो करीब रोज़ ही रामलाल सीता को खेत के पम्प हाउस में चोदता था। सीता भी पूरा मज़ा ले कर चुदवाती थी। रामलाल के खेत में काम करने वाली सभी औरतों को पता था की जीजा जी साली की खूब चुदाई कर रहे हैं। ये सिलसिला करीब चार साल चला। सीता की शादी के बाद रामलाल फिर खेत में काम करने वालिओं को चोदने लगा। लेकिन वो मज़ा कहां जो सीता को चोदने में आता था। बड़े नाज़ नखरों के साथ चुदवाती थी। शादी के बाद एक बार सीता गावं आई थी। मौका देख कर रामलाल ने फिर उसे चोदा। सीता ने रामलाल को बताया था कि रामलाल के लम्बे मोटे लौड़े के बाद उसे पति के लंड से तृप्ति नहीं होती थी। सीता भी रामलाल को कहती "जीजू आपका लंड तो सचमुच गधे के लंड जैसा है।" गावं में गधे कुछ ज़्यादा ही थे। जहां नज़र डालो वहीं चार पांच गधे नज़र आ जाते। कुछ दिन बाद सीता के पति और सीता दुबई चले गये। उसके बाद से रामलाल को कभी भी चुदाई से तृप्ति नहीं मिली। अब तो सीता को दुबई जा कर २० साल हो चुके थे। रामलाल के लिये अब वो सिर्फ़ याद बन कर रह गयी थी। माया देवी तो अब पूजा पाठ में ही ध्यान लगाती थी। इस उम्र में खेत में काम करने वाली औरतों को भी चोदना मुश्किल हो गया था। अब तो जब कभी माया देवी की मर्जी होती तो साल में एक दो बार उनको चोद कर ही काम चलाना पड़ता था। लेकिन माया देवी को चोदने में बिल्कुल भी मज़ा नहीं आता था। धीरे धीरे रामलाल को विश्वास होने लगा था की अब उसकी चोदने की उम्र निकल गयी है। लेकिन जब से बहु घर आई थी रामलाल की जवानी की यादें फिर से ताज़ा हो गयी थी। बहु की जवानी तो सचमुच ही जानलेवा थी। सीता तो बहु के सामने कुछ भी नहीं थी। शादी के बाद से तो बहु की जवानी मानो बहु के ही काबू में नहीं थी। बहु के कपड़े बहु की जवानी को छुपा नहीं पाते थे। जब से बहु आई थी रामलाल की रातों की नींद उड़ गयी थी। बहु रामलाल से पर्दा करती थी। मुंह तो ढक लेती थी लेकिन उसकी बड़ी बड़ी चूचिआं खुली रहती थी। गोरा बदन, लम्बे काले घने बाल, बड़ी बड़ी छातिआं, पतली कमर और उसके नीचे विशाल फैलते हुए चूतड़ बहुत जान लेवा थे। टाईट चूड़ीदार में तो बहु की मांसल टांगें रामलाल की वासना भड़का देती थी। कन्चन जी जान से अपने सास ससुर की सेवा करने में लगी हुई थी। कन्चन को महसूस होने लगा था की ससुरजी उसे कुछ अजीब सी नज़रों से देखते हैं। वैसे भी औरतों को मर्द के इरादों का बहुत जल्दी पता लग जाता है। फिर वो अक्सर सोचती की शायद ये उसका वहम है। ससुर जी तो उसके पिता के समान थे। एक दिन की बात है। कन्चन ने अपने कपड़े धो कर छत पर सूखने डाल रखे थे। इतने में घने बादल छा गये। बारिश होने को थी।
एक दिन की बात है। कन्चन ने अपने कपड़े धो कर छत पर सूखने डाल रखे थे। इतने में घने बादल छा गये। बारिश होने को थी।
रामलाल कन्चन से बोले, "बहु बारिश होने वाली है मैं ऊपर से कपड़े ले आता हूं।"
"नहीं नहीं पिताजी आप क्यों तकलीफ़ करते हैं मैं अभी जा के ले आती हूं।" कन्चन बोली। उसे मालूम था की आज सिर्फ़ उसी के कपड़े सूख रहे थे।
"अरे बहु तुम सारा दिन इतना काम करती हो। इसमे तकलीफ़ कैसी? हमें भी तो कुछ काम करने दो।" ये कह के रामलाल छत पे चल पड़ा।
छत पे पहुंच के रामलाल को पता लगा की क्यों बहु खुद ही कपड़े लने की ज़िद कर रही थी। डोरी पर सिर्फ़ दो ही कपड़े सूख रहे थे। एक बहु की कच्छी और एक उसकी ब्रा। रामलाल का दिल ज़ोर ज़ोर से धड़कने लगा। कितनी छोटी सी कच्छी थी, बहु के विशाल नितम्बों को कैसे ढकती होगी। रामलाल से नहीं रहा गया और उसने कन्चन की पैंटी को डोरी से उतार लिया और हाथों में पैंटी के मुलायम कपड़े को फ़ील करने लगा। फिर उसने पैंटी को उस जगह से सूंघा जहां कन्चन की चूत और पैंटी का मिलन होता था। हालांकि पैंटी धुली हुई थी फिर भी रामलाल औरत के बदन की खुश्बू पहचान गया। रामलाल मन ही मन सोचने लगा की अगर धुली हुई कच्छी में से इतनी मादक खुश्बू आती है तो पहनी हुई कच्छी की गंध तो उसे पागल बना देगी। रामलाल का लौड़ा हरकत करने लगा। वो बहु की पैंटी और ब्रा ले कर नीचे आया, "बहु ऊपर तो ये दो ही कपड़े थे।"
ससुर के हाथ में अपनी पैंटी और ब्रा देख कर कन्चन शरम से लाल हो गयी। उसने घूंघट तो निकाल ही रखा था इसलिये रामलाल उसका चेहरा नहीं देख सकता था। कन्चन शर्माते हुए बोली,"पिताजी इसिलिये तो मैं कह रही थी कि मैं ले आती हूं। आपने बेकार तकलीफ़ की।"
"नहीं बहु तकलीफ़ किस बात की? लेकिन ये इतनी छोटी सी कच्छी तुम्हारी है?"
अब तो कन्चन का चेहरा टमाटर की तरह सुर्ख लाल हो गया।
"ज्ज्जजी पिताजी।" कन्चन सिर नीचे किये हुए बोली।
"लेकिन बहु ये तो तुम्हारे लिये बहुत छोटी है। इससे तुम्हारा काम चल तो जाता है ना?"
"जी पिताजी।" कन्चन सोच रही थी की किसी तरह ये धरती फट जाए और मैं उसमे समा जाऊं।
"बेटी इसमें शर्माने की क्या बात है ?। तुम्हारी उम्र में लड़किओं की कच्छी अक्सर बहुत जल्दी छोटी हो जाती है। गावं में तो औरतें कच्छी पहनती नहीं हैं। अगर छोटी हो गयी है तो सासु मां से कह देना शहर जा कर और खरीद लाएंगी। हम गये तो हम ले आएंगे। लो ये सूख गयी है, रख लो।" ये कह कर रामलाल ने कन्चन को उसकी पैंटी और ब्रा दे दी।
इस घटना के बाद रामलाल ने कन्चन के साथ और खुल कर बातें करना शुरु कर दिया था एक दिन माया देवी को शहर सत्संग में जाना था। रामलाल उनको ले कर शहर जाने वाला था। दोनों घर से सुबह स्टेशन की ओर चल पड़े। रास्ते में रामलाल के जान पहचान का लड़का कार से शहर जाता हुआ मिल गया। रामलाल ने कहा कि आन्टी को भी साथ ले जाओ। लड़का मान गया और माया देवी उसके साथ कार में शहर चली गयी।
रामलाल घर वापस आ गया। दरवाज़ा अन्दर से बन्द था। बाथरूम से पानी गिरने की आवाज़ आ रही थी। शायद बहु नहा रही थी। कन्चन तो समझ रही थी कि सास ससुर शाम तक ही वापस लौटेंगे। रामलाल के कमरे का एक दरवाज़ा गली में भी खुलता था। रामलाल कमरे का ताला खोल के अपने कमरे में आ गया। उधर कन्चन बेखबर थी। वो तो समझ रही थी कि घर में कोई नहीं है। नहा कर कन्चन सिर्फ़ पेटिकोट और ब्लाउज में ही बाथरूम से बाहर निकल आई। उसका बदन अब भी गीला था। बाल भीगे हुए थे। कन्चन अपनी पैंटी और ब्रा जो अभी उसने धोई थी सुखाने के लिये आंगन में आ गयी। रामलाल अपने कमरे के पर्दे के पीछे से सारा नज़ारा देख रहा था। बहु को पेटिकोट और ब्लाउज में देख कर रामलाल को पसीना आ गया। क्या बला की खूबसूरत थी।
बहुत कसा हुआ पेटिकोट पहनती थी। बदन गीला होने के कारण पेटिकोट उसके चूतड़ों से चिपका जा रहा था। बहु के फैले हुए चूतड़ पेटिकोट में बड़ी मुश्किल से समा रहे थे। बहु का मादक रूप मानो उसके ब्लाउज और पेटिकोट में से बाहर निकलने की कोशिश कर रहा था। ऊफ क्या गदराया हुआ बदन था। बहु ने अपनी धुली हुई कच्छी और ब्रा डोरी पर सूखने डाल दी। अचानक वो कुछ उठाने के लिये झुकी तो पेटिकोट उसके विशाल चूतड़ों पर कस गया। पेटिकोट के सफ़ेद कपड़े में से रामलाल को साफ़ दिख रहा था की आज बहु ने काले रंग की कच्छी पहन रखी है। ऊफ बहु के सिर्फ़ बीस प्रतिशत चूतड़ ही कच्छी में थे बाकी तो बाहर गिर रहे थे। जब बहु सीधी हुई तो उसकी कच्छी और पेटिकोट उसके विशाल चूतड़ों के बीच में फंस गये। अब तो रामलाल का लौड़ा फनफनाने लगा। उसका मन कर रहा था की वो जा कर बहु के चूतड़ों की दरार में फंसी पेटिकोट और कच्छी को खींच के निकाल ले। बहु ने मानो रामलाल के दिल की आवाज़ सुन ली। उसने अपनी चूतड़ों की दरार में फंसे पेटिकोट को खींच के बाहर निकाला लिया। बहु आंगन में खड़ी थी इसलिये पेटिकोट में से उसकी मांसल टांगें भी नज़र आ रही थी। रामलाल के लंड में इतना तनाव सीता को चोदते वक्त भी नहीं हुआ था। बहु के सेक्सी चूतड़ों को देख के रामलाल सोचने लगा की इसकी गांड मार के तो आदमी धन्य हो जाए।
रामलाल ने आज तक किसी औरत की गांड नहीं मारी थी। असलियत तो ये थी की रामलाल का गधे जैसा लौड़ा देख कर कोई औरत गांड मरवाने के लिये राज़ी ही नहीं थी। माया देवी तो चूत ही बड़ी मुश्किल से देती थी गांड देना तो बहुत दूर की बात थी। एक दिन कन्चन ने खेतों में जाने की इच्छा प्रकट की।
उसने सासु मां से कहा, "मम्मी जी मैं खेतों में जाना चाहती हुं, अगर आप इज़ाज़त दें तो आपके खेत और फसल देख आऊं। शहर में तो ये देखने को मिलता नहीं है।"
"अरे बेटी इसमें इज़ाज़त की क्या बात है? तुम्हारे ही खेत हैं जब चाहो चली जाओ। मैं अभी तुम्हारे ससुर जी से कहती हूं तुम्हें खेत दिखाने ले जाएं।"
"नहीं नहीं मम्मी जी आप पिताजी को क्यों परेशान करती हैं मैं अकेली ही चली जाउंगी।"
"इसमे परेशान करने की क्या बात है? कई दिन से ये भी खेत नहीं गये हैं तुझे भी साथ ले जाएंगे। जाओ तुम तैयार हो जाओ। और हां लहंगा चोली पहन लेना, खेतों में जाने के लिये वही ठीक रहता है।" कन्चन तैयार होने गयी।
माया देवी ने रामलाल को कहा, "अजी सुनते हो, आज बहु को खेत दिखा लाओ। कह रही थी मैं अकेली ही चली जाती हूं। मैनें ही उसको रोका और कहा ससुरजी तुझे ले जाएंगे।"
"ठीक है मैं ले जाउंगा, लेकिन अकेली भी चली जाती तो क्या हो जाता? गावं में किस बात का डर?""
"कैसी बातें करते हो जी? जवान बहु को अकेले भेजना चाहते हो। अभी नादान है। अपनी जवानी तो उससे सम्भाली नहीं जाती, अपने आप को क्या सम्भालेगी? "
इतने में कन्चन आ गयी। लहंगा चोली में बला की खूबसूरत लग रही थी।
"चलिये पिताजी मैं तैयार हूं।"
"चलो बहु हम भी तैयार हैं।"
ससुर और बहु दोनों खेत की ओर निकल पड़े। कन्चन आगे आगे चल रही थी और रामलाल उसके पीछे। कन्चन ने घूंघट निकाल रखा था। रामलाल बहु की मस्तानी चाल देख कर पागल हुआ जा रहा था। बहु की पतली गोरी कमर बल खा रही थी। उसके नीचे फैले हुए मोटे मोटे चूतड़ चलते वक्त ऊपर नीचे हो रहे थे। लहंगा घुटनों से थोड़ा ही नीचे था। बहु की गोरी गोरी टांगें और चूतड़ों तक लटकते लम्बे घने काले बाल रामलाल की दिल की धड़कन बढ़ा रहे थे। ऐसा नज़ारा तो रामलाल को ज़िन्दगी में पहले कभी नसीब नहीं हुआ।
रामलाल की नज़रें बहु के मटकते हुए मोटे मोटे चूतड़ों और पतली बल खाती कमर पर ही टिकी हुई थी। उन जानलेवा चूतड़ों को मटकते देख कर रामलाल की आंखों के सामने उस दिन का नज़ारा घूम गया जिस दिन उसने बहु के चूतड़ों के बीच उसके पेटिकोट और कच्छी को फंसे हुए देखा था। रामलाल का लौड़ा खड़ा होने लगा। कन्चन घूंघट निकाले आगे आगे चली जा रही थी। वो अच्छी तरह जानती थी की ससुर जी की आंखें उसके मटकते हुए नितम्बों पे लगी हुई हैं। रास्ता संकरा हो गया था और अब वो दोनों एक पगडन्डी पे चल रहे थे।
अचानक साईड की पगडन्डी से दो गधे कन्चन के सामने आ गये। रास्ता इतना कम चौड़ा था की साईड से आगे निकलना भी मुश्किल था। मजबूरन कन्चन को गधों के पीछे पीछे चलना पड़ा। अचानक कन्चन का ध्यान पीछे वाले गधे पे गया।
"अरे पिताजी देखिये ये कैसा गधा है? इसकी तो पांच टांगें हैं।" कन्चन आगे चल रहे गधे की ओर इशारा करते हुए बोली।
"बेटी, तुम तो बहुत भोली हो, ज़रा ध्यान से देखो इसकी पांच टांगें नहीं हैं।"
कन्चन ने फिर ध्यान से देखा तो उसका कलेजा धक सा रह गया। गधे की पांच टांगें नहीं थी, वो तो गधे का लंड था। बाप रे क्या लम्बा लंड था! ऐसा लग रहा था जैसे उसकी टांग हो। कन्चन ने ये भी नोटिस किया कि आगे वाला गधा, गधा नहीं बल्कि गधी थी क्युंकि उसका लंड नहीं था। गधे का लंड खड़ा हुआ था। कन्चन समझ गयी कि गधा क्या करने वाला था। अब तो कन्चन के पसीने छूट गये। पीछे पीछे ससुर जी चल रहे थे। कन्चन अपने आप को कोसने लगी कि ससुर जी से ये क्या सवाल पूछ लिया। कन्चन का शरम के मारे बुरा हाल था।
रामलाल को अच्छा मौका मिल गया था। उसने फिर से कहा, "बोलो, बहु। हैं क्या इसकी पांच टांगें?"
कन्चन का मुंह शरम से लाल हो गया, और हकलाती हुई बोली, "ज्जजी चार ही हैं।"
"तो वो पांचवी चीज़ क्या है बहु?"
"ज्ज्ज.. । जी वो तो.... । जी हमें नहीं पता।"
"पहले कभी देखा नहीं बेटी?" रामलाल मज़े लेता हुआ बोला।
"नहीं पिताजी।" कन्चन शर्माते हुए बोली।
"मर्दों की टांगों के बीच में जो होता है वो तो देखा है ना?"
"जी।", अब तो कन्चन का मुंह लाल हो गया।
"अरे बहु जो चीज़ मर्दों के टांगों के बीच में होती है ये वहीं चीज़ तो है।" रामलाल कन्चन के साथ इस तरह की बातें कर ही रहा था कि वही हुआ जो कन्चन मन ही मन मना रही थी कि ना हो।
रामलाल कन्चन के साथ इस तरह की बातें कर ही रहा था कि वही हुआ जो कन्चन मन ही मन मना रही थी कि ना हो।
गधा अचानक गधी पे चढ़ गया और उसने अपना तीन फ़ुट लम्बा लंड गधी की चूत में पेल दिया। गधा वहीं खड़ा हो कर गधी के अन्दर अपना लंड पेलने लगा। इतना लम्बा लंड गधी की चूत में जाता देख कन्चन हड़बड़ा कर रुक गयी और उसके मुंह से चीख निकल गयी,
"ऊइइई मां॥"
"क्या हुआ बहु?"
"ज्ज्जजी कुछ नहीं।" कन्चन घबराते हुए बोली।
"लगता है हमारी बहु डर गयी।" रामलाल मौके का पूरा फायदा उठता हुआ डरी हुई कन्चन का साहस बढ़ाने के बहाने उसकी पीठ पे हाथ रखता हुआ बोला।
"जी पिताजी।"
"क्यों डरने की क्या बात है?"
"वैसे ही।"
"वैसे ही क्या मतलब? कोई तो बात ज़रूर है। पहली बार देख रही हो ना?" रामलाल कन्चन की पीठ सहलाता हुआ बोला।
"जी।" कन्चन शर्माते हुए बोली।
"अरे इसमें शर्माने की क्या बात है बहु। जो राकेश तुम्हारे साथ हर रात करता है वही ये गधा भी गधी के साथ कर रहा है।"
"लेकिन इसका तो इतना.....।" कन्चन के मुंह से अनायास ही निकल गया और फिर वो पछतायी।
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